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सोमवार, 5 सितंबर 2011

Guru गुरु

गुरु ज्ञान का सागर है,
गुरु गुणों का है भंडार,
गुरु बिना अज्ञानता की नैय्या को 
कौन लगाये पार,

गुरु ना जाने अमीर - गरीब,
गुरु ना जाने जात - पात,
ना कोई वेश और भाषा,
गुरु तो जलाये हर वक़्त 
ज्ञान के दीप,
बढ़ाये मन में उमंग और आशा ...

2 टिप्‍पणियां:

  1. ईमानदारी से कहता हूँ , आपकी कविता में वर्णित गुरु की मुझे आज भी तलाश है |
    आजकल तो गुरु सिर्फ उसे ही कहते हैं जो अपनी शिक्षा को बेचता है , जबकि मेरा गुरु तो शायद फर्श पर फैला हुआ वो पानी है , जिसने मुझे संभल कर चलना सिखाया |

    आकाश

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