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रविवार, 28 अगस्त 2011

Aurat औरत


औरत तेरी यही कहानी 
कभी सीता तो कभी राधा रानी 
कभी पत्नी तो कभी प्रेमिका बनी तू 
कभी माँ बनी तो कभी बनी जगकल्यानी
औरत तेरी यही कहानी 

Aajad kar do mujhe आजाद कर दो मुझे





आजाद कर दो मुझे उड़ना चाहती हु मै
ईश्वर की सुन्दर कल्पना से मिलना चाहती हू मै
मुझे ना बांधो तुम सामाजिक डोर से
मुझे ना बांधो तुम रिश्तों की डोर से

आजाद कर दो मुझे, मै देखना चाहती हू
इस दुनिया को,,,, 

इस भीगी धरती को, उस नीले आसमान को
मै जीना चाहती हू,अपनी रफ़्तार से
इस कल्पना की उड़ान में 

आजाद कर दो मुझे उड़ना चाहती हु मै
ईश्वर की सुन्दर कल्पना से मिलना चाहती हू मै


आजाद कर दो मुझे मै देखना चाहती हु इस दुनिया के रंग ,,,
कहीं प्यार में झुपी नफरत ,
तो कहीं सच में झुपा झूंठ ,
मै देखना चाहती हु उन लोगो को ,
मै जानना चाहती हु, उस हर एक चेहरे को


जो इस दुनिया में रहते है 
जिनके मन में हर पल नयी व्यथाए जन्म लेती है,

क्या सचमुच इश्वर ने ये दुनिया बसाई 
या मनुष्य ने स्वयं ऐसी राह अपनाई 
जहा केवल दुःख ,हिंसा ,गरीबी, घृणा ,और लड़े आपस में भाई - भाई

आजाद कर दो मुझे , मै बदलना चाहती हु,
इस श्रुष्टि को , इस श्रुष्टि में बसे इंसानों को....


आजाद कर दो मुझे , मै बदलना चाहती हु, 
इस श्रुष्टि को इश्वर की उस सुन्दर कल्पना में,,,,

जहा सुख , अहिंसा ,प्रेम ,और सम्मान हो,
जहा मनुष्य मनुष्यता के लिए मरे 
ना उंच - नीच का भेद हो ,,,
ना नफ़रत की दिवार हो,,,


आजाद कर दो मुझे उड़ना चाहती हु मै
इश्वर की सुन्दर कल्पना को साकार करना चाहती हु मै


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