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शनिवार, 19 मई 2012

khud men dhundhati hun tumhe खुद में ढूंढ़ती हूँ तुम्हें......


एक बेरंग जिंदगी जो अपने रंगीन जीवन के सारे
रंगों को खुद में समेटती है और ढूंढ़ती उस खास रंग को जो उसके माथे पर सजते थे ....
खुद में ढूंढ़ती हूँ तुम्हें......
तुम्हारी अदा को अपनी अदा बनाकर 
खुद में ढूंढ़ती हूँ तुम्हें........
तुम्हारी मुस्कान को अपने चेहरे पर सजाकर 
खुद में ढूंढ़ती हूँ तुम्हें.......
तुम्हारी जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर उठाकर 
खुद में ढूंढ़ती हूँ तुम्हें.......
आईने के सामने घंटों खड़े रहकर 
अपने बालों को सवांरना
खुद को आईने में निहारना....
अब तो ये सब मैंने भी सिख लिया है
आसमानी रंग की शर्ट पहनकर 
आसमान को देखते रहना
जाने क्या सुकून मिलता था तुम्हें इसमे
पर अब देखो मै भी आसमानी रंग की साड़ी पहनकर 
घंटों आसमान को देखती हूँ 
 और खुद में ढूंढ़ती हूँ तुम्हें.....
तुम्हारी आदतों को अपना बनाकर 
तुम्हारी खुशबू को खुद में बसाकर 
ढूंढ़ती हूँ तुम्हें........
और अब लगता है मेरी तलाश पूरी भी हो गयी है
तभी तो ये आसमानी रंग 
ये खुशबू 
ये ज़िम्मेदारियाँ 
तुम्हारी मुस्कान
सब मुझे भी तो भाते है...
क्यूंकि तुम कहीं नहीं गए हो 
तुम मुझमे बसे हो......
मुझमे बसे हो सदा के लिये .....

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