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शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

maa aur mera bachpan माँ और मेरा बचपन


आज भी याद आती है
वो मेरे बचपन कि शरारते
और माँ कि तरह बनने कि इक्षा
सबसे पहले उठा ली थी 
माँ कि वो सुन्दर सी पिली साड़ी
और पहन ली थी गोल - गोल लपेटकर
माथे पर बड़ी - सी लाल बिंदी 
सर पर पल्ला 
खिलखिलाती मुस्कान
और टूटे हुए दाँत के साथ पूछना 
माँ मै कैसी लग रही हूँ ??
तब माँ ने मेरी बलाइयां लेकर कहा था,,,
मेरी प्यारी गुड़िया अब बड़ी हो रही है
माँ के लिए मैंने बनायीं थी 
जब पहली चाय ,,,
शाम का वक्त था 
बना ही ली दूध ज्यादा कम शक्कर कि
वो पहली एक प्याली चाय 
फिर माँ ने मेरी बलाइयां लेकर कहा
मेरी प्यारी गुड़िया अब सयानी हो रही है..
कितना अच्छा लगता था
जब माँ मीठी मुस्कान के साथ
बलाइयां लेकर तारीफे किया करती थी
आज भी कुछ वैसा ही मंजर है
आज भी पहनी हूँ सुन्दर सी पिली साड़ी
हाथ में चाय कि प्याली
पर माँ के लिए नहीं
उम्र के एक पड़ाव में
होनेवाले हमसफ़र के लिए
ओह माँ वो बचपन कितना प्यारा था
और आज सचमुच आपकी गुड़िया बड़ी हो गई है
मेरी प्यारी माँ....







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सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

kya hai astitv mera क्या है अस्तित्व मेरा


क्या है अस्तित्व मेरा
मैं स्त्री , मैं माँ, मैं बेटी, मैं बहन
मैं ही हूँ घर संसार
शुभ-लाभ मुझसे ही है
मुझसे ही बंधे सब परिवार
फिर क्युँ, क्युँ ??
बांध दिया जाता है मुझे 
स्त्रीलिंग की परिभाषा से
रोक दिए जाते हैं कदम मेरे
सीमाओं , हदों , दायरों के भीतर
क्यों मैं अपनी मर्जी की नहीं 
क्युँ तुमने झोंक दिया मेरा चेहरा
तुम्हारे इजहार पर 
मैंने इंकार कर दिया था
क्या इसलिए ??
क्या मेरी कोई पसंद नहीं
मैं तुम्हें पसंद थी पर 
ये जरुरी तो नहीं था न
की तुम भी मुझे पसंद ही आते
जरा सी बात पर
जल दिया मेरा चेहरा 
अपने झूठे घमंड की क्रोधाग्नि में ....
जब थोड़ा सजना सँवरना चाहा
तो क्युँ नहीं दिखाई दी तुम्हें
स्त्रीमन की कोमल भावनाएँ..
तुमने देखा केवल 
एक सजा- धजा शरीर
और जाग गया तुम्हारे 
अंदर का वो भूखा भेड़ियां
और कर दिया तुमने 
नारी अस्मत को तार-तार
करते हो पूजन
नौ दुर्गा नौ दिन
करते हो लक्ष्मी का 
नित स्मरण
फिर क्युँ करते हो 
देवियों के प्रतिरूपी स्त्रियों पर 
यूँ अत्याचार.....
हे पुरुष...








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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

Wo aurat वो औरत


वो औरत जब निकलती है घर से
दर्जनभर सुहाग की निशानिया पहनकर
सिंदूरी आभा बिखेरती उसकी माँग
गले में लटकाये तोलाभर मंगलसूत्र 
हाथों में पिया नाम की मेहंदी
और दर्जन - दो- दर्जनभर चूड़ियाँ 
पैरों की उंगलियो में हीरे जड़ित चाँदी के बिछुए
गहरे गुलाबी रंग के आलते से रंगे उसके पांव 
खुद को पल्लू में छुपाती,मुस्काती 
बड़ी ही खुशमिजाज लग रही थी
पर कोई न देख पाया उसकी 
एक और सुहाग निशानी 
जिसे उसने छुपा रखा है 
इनसभी सुहाग निशानियों के बीच 
कजरारी अँखियों में छुपी रोती हुयी आँखे
वो घाव जो उसकी चूड़ियों के बीच से कराह रहे थे
वो घाव जो उसके सुहाग की बर्बरता को 
चीख -चीख कर सुनाने की भरसक कोशिश कर रहे थे...
पर इन सुहाग निशानियों को छिपा दिया है 
उसने अपनी चमचमाती सुहाग निशानियों के बीच....
वो औरत ....
उस औरत ने....






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गुरुवार, 18 सितंबर 2014

Prem प्रेम



मैंने कहा प्रेम और 

उसने मेरा नाम लिख दिया ....
अश्को के मोतियों से 
मेरे काँधे को भिगो दिया ....
हाथ थाम मेरा 
बड़ी शिद्दत से जो उसने कहा ,,,
चलोगी साथ मेरे
हां कह दिया मन ने 
और मेरा दिल उसके साथ चल दिया....
मैंने कहा प्रेम -
और उसने मेरा नाम लिख दिया .....

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उदास लम्हों को दूँ उलाहना 
की तू चला जाये .....
खुशनुमा पलों से करूँ गुजारिश
की वो जरा ठहर जाये .....
आज जश्न - ऐ - बहार होगा 
खुशियां होंगी साथ 

लबों पर सजेंगी मुस्कानें ...
आज बड़े दिनों बाद
मेरे हाथों में
मेरे सनम का हाथ होगा....

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रविवार, 17 अगस्त 2014

oo more kanha ओ मोरे कान्हा


श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें *.*.*...



ओ मोरे कान्हा 
तू ना बंसी बजाना ......
बंसी की धुन पर 
धड़क ऊठे मोरा जिया ....
तेरे चरणों में बैठ 
बिसरू सारी दुनिया ....
ना ना तू बंसी ना बजाना
देख साँझ हो गयी है कान्हा .....
मुझे घर भी तो है जाना
ओ मोरे कान्हा तू ना बंसी बजाना ....












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सोमवार, 30 जून 2014

अहसास



यूँ बारिश में भीगना 

चहरे पर रिमझिम बूंदों का गिरना
ठन्डे-ठन्डे अहसास में
जब तुम प्यार से बुलाते हो
सालसा के डांस पर 
पुराने गीत गुनगुनाते हो
" आज फिर तुमपे प्यार आया है
बेहद और बेहिसाब आया है "
चार पंक्ति के गीत 
और सालसा के चार फेरों में 
जब तुम्हारा रोमांस ख़त्म हो जाता है
डर में मुस्कराहट घोलकर
कॉफी की मांग करते हो
सच पूछो तो बड़े भोले से लगते हो
ठंडी बयार , भीगा सा मौसम
और गरमागरम कॉफी के साथ
जब तुम कहानीयाँ सुनाते हो
एक अलग ही सपनों की 
दुनिया में ले जाते हो
गाल पर हाथ धर
शून्य में देखते हुए 
कॉफी की चुस्कियां लेते हो
सच पूछो तो बड़े भोले से लगते हो










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शुक्रवार, 9 मई 2014

Naari Roop नारी रूप


नारी तू है मूरत एक
लेकिन तेरे रूप अनेक ......

जन्म लिया जब बेटी बनकर
किलकारी से किया घर को गुंजन
मधुर पाजेब कि झंकार से
पुरे घर में करती तू झम-झम
बनी किसी कि जब तू दुल्हन
रोशन करती उसका घर-आँगन
घर में आई धर लक्ष्मी रूप
पवित्रता तेरी माँ तुलसी रूप

नारी तू है मूरत एक
लेकिन तेरे रूप अनेक ......

आई जब तू ममत्व धरा पर
अाँचल में अमृत रस भर
ह्रदय में लिए प्रेम अपार
करती तू बच्चों का जीवन साकार
और भी हैं तेरे कितने रूप
तू हरदम सहती छाँव और धूप

मिलता जब भी स्नेह तुम्हें
महकती बन तू कोमल फूल 
नजर पड़े जो अस्मत पर तेरे
तू बन जाती कठोर शूल 

नारी तू है मूरत एक
लेकिन तेरे रूप अनेक ....








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बुधवार, 26 मार्च 2014

Shabd-rekha-chitra शब्द - रेखा - चित्र


ओ मेरे कलाकार सुन लो इस 
कविता कि पुकार....
मै जो कहूँ शब्द - शब्द 
तुम खींचते जाना रेखाएँ .....
मै जो कहूँ बगिया हो सुन्दर
तुम बनाना पुष्प , वृक्ष और लताएँ .....
मै जो कहूँ हमारा घर हो प्यारा
तुम रंगना उसे ऐसा जो लगे एकदम सा न्यारा .....
मै जो कहूँ दो प्रेमी का जोड़ा
तुम बनाना कुछ ऐसा जिसमे अश्क हो हमारा थोड़ा- थोड़ा ....
मै जो कहूँ आजीवन हम रहेंगे साथ
तुम बनाना मजबूती से पकड़े हुए दो हाथ...
मै जो कहूँ मेरा पूरा कर दो संसार
तुम बनाना एक खिलखिलाती नन्हीं मुस्कान ....
ओ मेरे कलाकार सुन ली जो तुमने इस कविता कि पुकार
जीवन सफल हुआ है मेरा ....
ना ही कोई छल कपट
ना ही है इसमें कोई धोखा
कला - कविता का ये संगम अनोखा...
ओ मेरे कलाकार 
तुम ही हो मेरा जीवन
तुम ही हो मेरा सम्पूर्ण संसार.....

ये मेरा प्रेम अहसास है...
इसलिए जरा खास है...







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रविवार, 16 मार्च 2014

holi होली हाइकु


बहार लाए
रंगों कि बरसात 
फागुन आए

फागुन आए 
सजनवा छबीला
रंग लगाए

रंग लगाए 
कि मोहे तड़पाए
बहियाँ मोड़े

बहियाँ मोड़े
चुटिया मोरी खींचे
मोहे सताए

मोहे सताए 
मुँहवां बीचकाए
रंग लगाए

रंग लगाए 
मनवा खिल जाए
फागुन आए.....



गुरुवार, 6 मार्च 2014

mata- pita माता- पिता

हाइकू 


नौ महीने से 
सींचा कोख मे माँ ने 
राजकुमारी


हाथ थामती
हर संकट , दुःख 
हर लेती माँ


त्याग कि देवी
ममता कि छाँव माँ
प्रेम लुटाती


बरगद सा
उंगलियाँ थामे वो
पिता है खड़ा 

कठोर बन 
देता हिम्मत पिता
मार्ग दिखाता 

माता कि डांट
पिता कि फटकार 
जीना सफल


कंधा पापा का
बैठकर घूमती 
देखती जग


उंगली थामे 
चलना सिखा मैंने
माता - पिता से 

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

kala - kavita कला - कविता


ओ मेरे कलाकार 
सुन लो इस कविता कि पुकार
तुम उतारो अपने मन कि बात .......
अपनी कला में
मै कविता में कहूँगी 
अपने सारे जज्बात ........
तुम चुन - चुन रंग भरना इसमें
मै लिखूँगी शब्दों से सभी सुनहरी याद......
तुम रंगों से जान भरना
मै शब्दों में लिखूँगी हमारे दिल कि बात ....
तुम बनाना नीली चादर ओढ़े रात
मै लिखूँगी सजीले सपनों कि बात .....
तुम बनाना दो प्रेमी का जोड़ा
मै अपनी कविता से पहनाऊँगी उन्हें 
एक-दुजे के बाँहों का हार .....
तुम अपनी कला से सजाना
मेरे मन कि दिवार .....
मै अपनी कविता से करुँगी
तुम्हारे ह्रदय में झंकार ....
ओ मेरे कलाकार 
सुन लो इस कविता कि पुकार ........

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

Mook Awaaz मूक आवाज




अपनें इशारों से हवा में
कितने ही तस्वीर उकेरती ......
अपने हाथों से अदृश्य 

कल्पना को दृश्य देती .....
अपनी आँखों से ना जाने 
कितने ही भाव उकेरती ......
अ आ अं अः स्वर से
अपनी बातों को कहती .....
सिमित शब्दों में वो 
अपनी सारी बातें कह जाती .....
अभिव्यक्ति के एक माध्यम से 
वंचित होने के साथ ही ,,,,,
उसने नए आयाम दिए है
अपनी भावनाओं को कहने को ......
वो मूक आवाज थोड़ा - थोड़ा बोलती थी 
हमेशा से अपने इशारों में ,,,
अपनें हाथों से
अपनी आँखों से
अपने सिमित स्वरों से
पर आज वो बहुत खुश है
क्यूंकि उसने बोलना सीख लिया है
अपनी कलम से....





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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

mera gussa tumhara pyar मेरा गुस्सा तुम्हारा प्यार...



मुझे याद है सौम्या वो दिन जब मैं बहुत गुस्से में था,और तुमपर खूब चिल्लाया...पर मैं करता भी क्या और मैंने तुमसे कहा भी था जब मैं गुस्से में होता हूँ तो तुम मुझसे दूर ही रहा करो... पर तुम कहाँ मानने वाली थी ..
और मुझसे कहने लगीं.... जब तुम्हारे प्यार ,तुम्हारे दुलार, तुम्हारी हर चीज पर ,तुम पर भी मेरा पूरा हक़ है,तो फिर तुम्हारे गुस्से पर क्यूँ नहीं...
जब प्यार के हरपल को हम साथ में जीते हैं ,,तो फिर गुस्से कि आग में मैं तुम्हें अकेले क्यूँ जलने दूँ ..
जो भी हो मील बाँटकर लेंगे , हर परेशानी हर मुश्किलों को दूर करेंगे ....

तुम्हारा वो प्यारा सा सवाल --- "क्या मेरा प्यार तुम्हारे इस गुस्से कि आग को ठंडा नहीं कर सकता ????"
सच सौम्या उस वक्त तुम्हारी आँखों में इतनी मासूमियत थी कि उसी पल को मेरा गुस्सा शांत हो गया था....
और हाँ तुम्हारा वो हार्ट शेप चॉकलेट उसे कैसे भूल सकता हूँ ...आज मैं भी लाया हूँ तुम्हारे लिए हार्ट शेप चॉकलेट ...
आओ सौम्या कुछ मीठा हो जाये....
हैप्पी चॉकलेट डे..










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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

He Sharade Maa हे शारदे माँ ...



आप सभी को वसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ...



 ....meri drawing ....

वीणावादिनी 
श्वेत वस्त्र धारिणी 
विद्या कि देवी 
सरस्वती माँ
करूँ अर्पण तुझे मेरा मन
नमन करूँ मैं
हे शारदे माँ ..........

हे शारदे माँ ..........
कमल पुष्प विराजिनी
मधुर स्वरवाहिनी 
ज्ञान कि देवी 
सरस्वती माँ
करूँ अर्पण तुझे मेरा मन
नमन करूँ मैं
हे शारदे माँ .......




पीली चुनर ओढ़कर 
धरती मंद-मंद मुस्काए .........
हरी-भरी ये धरती सुनहरी 
देखो कैसे खिल-खिल जाए.......
नवोत्सर का रूप सलोना
बगीया भी खिलखिलाए ...........
सुन्दर-सुन्दर फूल खीले हैं
मन हर्षित हो जाए .......
हरी-भरी चहुँ ओर धरा हैं...
खेतों में धानी- बालियाँ लहलहाए ......
कोयल कि कूंक निराली
पंछी भी चहचहाए ............
खुशियाँ लेकर आया बसंत
मन - मयूरा भी खूब नाचे और गाएं ........
सरस्वती माँ कि करो वंदना 
बुद्धि , विद्या , साज और सुर के 
सभी जन आशीष पाएं ..........









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बुधवार, 29 जनवरी 2014

dahlij ke par दहलीज के पार...



कल्पनाओं में रंग भर दिए 
इक्छाओं में जान फूँक दी
सपनों को परवाज देकर 
लक्ष्य को आवाज देकर
मैं निकल पड़ी दहलीज के पार.....
                         हाँ मैं निकल पड़ी दहलीज के पार ......

माता -पिता का आशीर्वाद लेकर
कुछ अपनों को साथ लेकर 
मंजिल को यादकर कर 
हे ईश्वर तेरा नाम लेकर 
मैं निकल पड़ी दहलीज के पार......
                   हाँ मैं निकल पड़ी दहलीज के पार ......

कदम-कदम बढ़ाते जाना
अन्य कदमों को भी साथ मिलाना
कुछ खो कर तो बहुत कुछ पाकर 
अनुभव से सीखते - सिखाकर 
मैं निकल पड़ी दहलीज के पार .....
                    हाँ मैं निकल पड़ी दहलीज के पार ....









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सोमवार, 20 जनवरी 2014

tisari duniya तीसरी दूनियाँ ...


कहते है लोग प्रेम में दूनिया भुला देते है पर कुछ लोग अपनी नई दूनियाँ बनाते है जो कहलाती है तीसरी दूनियाँ ...

एक ही ऑफिस में काम करते थे | करीब ६ महीने कि जान पहचान . ५ महीनों कि दोस्ती और बातचीत,और घंटो आँखों का आँखों से मिलना,जिसमे रोज घंटो कि लड़ाई..दोनों ही बातूनी झगड़ालू और शर्तो के उस्ताद ,,बात बात पर शर्त लगाना...

बातचीत भी कुछ ऐसी,, ज्यादा बातें ना बनाओ अगर मैंने बोलना शुरू किया तो तुम्हारी आँखे और कान खुले के खुले रह जायेंगे..
      अच्छा तो तुम्हें क्या लगता है तुम बोलोगी तो मैं चुप रहूँगा ..
 हाँ हाँ ।  तुम तो जरुर बोलोगे ,,बोले बिना तुम्हें चैन कहाँ..
अमन ---- प्रिया तुम ही हमेशा लड़ती रहती हो.गुस्सा तो जैसे तुम्हारी नाक पर बैठा रहता है कभी प्यार से शांति से भी दो शब्द बोल दिया करो ..
प्रिया--- प्यार के शब्द वो भी तुमसे .....
हम्म ...

अमन और प्रिया लगभग एक ही स्वभाव के थे..पर दोनों में ऐसे ही मस्ती- मस्ती में झगड़े होते रहते है ..प्रिया अक्सर अमन को गुस्से में झगड़ालू और" कमीने हो" कहती...
अमन भी उसे चिढ़ाने के लिए कह देता -- तुम भी कम नहीं हो तुम भी तो झगड़ा करती हो,, तो बन जाओ न इस कमीने कि कमिनी,, जोड़ी अच्छी रहेगी ..

दोनों अधिकतर साथ में ही रहते ,भले ही एक-दूसरे से लड़ते -झगड़ते पर एक -दूसरे को अच्छे से समझते भी थे.. जुबान पर गालियाँ पर मन में एक-दूसरे के लिए ढ़ेर सारा प्यार और सम्मान था..
पर किस्मत का खेल .. कानपूर से अमन के माँ कि चिट्ठी आई कि अमन के पिता कि तबियत ठीक नहीं है.अमन को तुरंत जाना था , वहाँ जाकर पता चला कि अमन के पिता अब कुछ ही दिनों के मेहमान है . अमन वहीँ रहकर अपने पिता कि सेवा करने लगा.अमन और प्रिया अक्सर फोन पर बात करते थे. इन दूरियों ने उनके बीच के प्रेम को और गहरा कर दिया. अमन और प्रिया ने एक-दूसरे से अपने प्रेम का इजहार कर दिया और शादी करने का फैसला लिया.इसी बीच अमन के पिता कि तबियत और बिगड़ती जा रही थी अमन के पिता ने उसे बुलाकर अपनी अंतिम, इक्छा बताई.उनकी अंतिम इक्छा थी कि उनके रहते ही अमन अपना गृहस्थ जीवन बसाकर उनके कारोबार को आगे बढ़ाए.पिता को ऐसी स्थिति में देख कर अमन उन्हें मना ना कर पाया. कुछ दिनों के बाद अमन के पिता ने अपनी संपत्ति अमन के नाम कर दी और अपने दोस्त के बेटी से उसकी शादी करवा दी...
        प्रिया को जब पता चला तो वो काफी उदास हो गई.कुछ महीनों के बाद प्रिया कि भी शादी हो गई.पर दोनों एक-दूसरे को भूल नहीं पाये थे .दोनों ने मिलने का फैसला लिया.दोनों शिव जी के मंदिर में मिले ,मिलते ही एक-दूसरे को गले लगाकर बहुत रोए.ह्रदय कि सारी वेदना जैसे अश्रु बन कर आँखों से झर - झर बहे जा रही थी.
दोनों के संस्कार और अपने माता - पिता के प्रति उनका प्यार उन्हें अपनी अलग दुनिया बसाने कि इजाजत भी तो नहीं देते..
ऐसे में अमन ने एक उपाय निकाला,,वो प्रिया से कहने लगा -- प्रिया एक दुनिया तुम्हारी है तुम्हारे पति के साथ दूसरी दुनिया मेरी है मेरी पत्नी के साथ तो क्यूँ ना हम अपनी तीसरी दुनिया बसाए. जिसमे हम दोनों साथ हो..
वो कैसे अमन--- यहीं इसी जगह पर हम हमारे प्यार का एक पौधा लगाएंगे जो बढ़ेगा और इसी के साथ हमारा प्यार भी बढ़ेगा. मैं हमेशा यहाँ आने कि कोशिश करूँगा .
प्रिया -- "नहीं अमन "--- हमारी तीसरी दुनिया बने इससे पहले मैं तुमसे एक वादा चाहती हूँ
बोलो प्रिया---- आजतक जो रिश्ते तुमसे जुड़े है और आनेवाले समय में और भी रिश्ते जुड़ते जायेंगे उन्हें तुम्हें पूरी ईमानदारी के साथ निभाना है ,,जरुर प्रिया --पर यही वादा मैं तुमसे भी चाहता हूँ....." वादा रहा"....
      तो चलो शुरुवात करतें है तीसरी दुनिया की--- तीसरी दुनियाँ की नींव पड़ गई.जब भी समय मिलता दोनों अक्सर यहाँ आते औए अपने प्रेम की ऊँचाई और सच्चाई को देखते..
    दोनों ने खूब मेहनत की और आसपास की जगह को भी पार्टनर बनकर खरीद लिया . अपनी - अपनी दुनियाँ में पूरी ईमानदारी से जीते हुए अपनी तीसरी दुनिया को साकार किया और वहाँ एक स्कूल - कॉलेज बनाया...

अमन और प्रिया अब भी मिलते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं | पर अब सब खुश हैं..
पहनी दुनियाँ , दूसरी दुनियाँ और तीसरी दुनियाँ के लोग भी… 
     
बस ऐसे ही मन में ख्याल आया और ये कहानी बन गई...
तीसरी दूनियाँ 
एक प्रेम कहानी...
कैसी है जरुर बताइये..

रविवार, 5 जनवरी 2014

mamta ki chhanv ममता कि छाँव



माँ रहती है तो सबकुछ 
कितना आसान होता है
जैसे कोई गम ...
कोई दुःख ...
कोई कठिनाई ...
बस छूकर निकल गई हो जैसे
हर तकलीफ हर गम से माँ उबारती है
बड़े ही सलीके और प्यार से समझाती है
हिम्मत और हौंसला है माँ
माँ तुझसे ही है मेरा जहाँ .....


माँ एक शब्द 
कितने अहसास
कितना प्रेम , 
कितने अपनत्व,
 कितने जज्बात
भर आँचल ममता ,
कितनी ही चिंता,,
हरपल आँखों में 
प्यारा सा सपना सजाती
अपने लाड़ले - लाड़लियों के लिए 
कितने ही त्याग देती 
एक चलती- फिरती मुस्कुराती देवी है माँ...
माँ तुझसे ही है मेरा जहाँ .....

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