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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

Wo aurat वो औरत


वो औरत जब निकलती है घर से
दर्जनभर सुहाग की निशानिया पहनकर
सिंदूरी आभा बिखेरती उसकी माँग
गले में लटकाये तोलाभर मंगलसूत्र 
हाथों में पिया नाम की मेहंदी
और दर्जन - दो- दर्जनभर चूड़ियाँ 
पैरों की उंगलियो में हीरे जड़ित चाँदी के बिछुए
गहरे गुलाबी रंग के आलते से रंगे उसके पांव 
खुद को पल्लू में छुपाती,मुस्काती 
बड़ी ही खुशमिजाज लग रही थी
पर कोई न देख पाया उसकी 
एक और सुहाग निशानी 
जिसे उसने छुपा रखा है 
इनसभी सुहाग निशानियों के बीच 
कजरारी अँखियों में छुपी रोती हुयी आँखे
वो घाव जो उसकी चूड़ियों के बीच से कराह रहे थे
वो घाव जो उसके सुहाग की बर्बरता को 
चीख -चीख कर सुनाने की भरसक कोशिश कर रहे थे...
पर इन सुहाग निशानियों को छिपा दिया है 
उसने अपनी चमचमाती सुहाग निशानियों के बीच....
वो औरत ....
उस औरत ने....






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