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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

sanyukt pariwar संयुक्त परिवार


बात हो गई अब ये पुरानी
जब दादी सुनाती थी कहानी

दादा के संग बागों में खेलना
रोज सुबह शाम सैर पर जाना

भरा पूरा परिवार था प्यारा
दादा दादी थे घर का सहारा

बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी

दादी की कहानी ग़ुम है
दादा जी अब कमरे में बंद है

गुमसुम हो गई उनकी जवानी
बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी

बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते

रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है

एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।

बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज के समय का बहुत सटीक शब्द चित्र...दिल को छूती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-10-2015) को "तलाश शून्य की" (चर्चा अंक-2140) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

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