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सोमवार, 5 दिसंबर 2016

Bhavishy भविष्य



रात की चादर में 
लिपटा है
चाँद - तारों से बातें 
करता है 
सितारों से
सीखता है गिनतियाँ
बचाता है खुद को
तेज हवाओं से 
ढूंढता है गर्माहट 
अपने हाथों की 
रगड़ में
मुँह से निकलते 
भाँप में
घुटनो को पेट तक
सिकोड़ लेता है
फटे चीथड़ों में 
लिपटा हुआ
मेरे देश का भविष्य 
या कह लो
अँधेरा भविष्य

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-12-2016) को "दुनियादारी जाम हो गई" (चर्चा अंक-2549) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. भयावह सच ...पर आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए ...

    जवाब देंहटाएं

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