आखिर क्यों
आखिर कबतक
यूँ बेआबरू
होती रहेंगी बेटीयाँ ?
कभी उनके कपड़ों पर
कभी उनकी आज़ादी पर
सवाल उठते थे ?
पर मासूम बच्चियाँ
दुधमुही बच्चियाँ अब उनपर
क्या और किस
बात का दोषारोपण होगा ?
उनपर किस बात की
उँगली उठेगी अब ?
क्यों नहीं ऊँगली उठती
उन वैहशी नज़रों पर
उनकी कोढ़ी आत्मा पर
उनके मलिन मस्तिष्क पर
और कहाँ सोया है
हमारा कानून
क्यों नहीं बनाता
कोई मिसाल
की जुल्म के बारे में
सोचकर ही काँप उठे
उन बेदर्दों की आत्मा
और उड़ सके ये बेटीयाँ
बिना किसी डर के
अपनी उड़ान..
आखिर डर के साए
में कबतक जीना होगा ?
बेटियों को और उनके
परिवारजनों को
फिर कैसे कोई
बेटी बचाएँ और उन्हें पढ़ायेगा ?
कब देंगे हम बेटियों को यह विश्वास
की वो है अब सुरक्षित ?
कब दे पाएँगे हम उन्हें
खुला आसमान ??
आखिर कब ???
रीना मौर्य मुस्कान
बढ़िया
जवाब देंहटाएंदुखद व विचारणीय
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में जगह देने हेतु आपका हार्दिक आभार...
जवाब देंहटाएंनिमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
सत्य वर्णन करती...प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंअक्सर लेखक अपनी पुस्तकों को बज़ट के अभाव में प्रकाशित नहीं करा पाते है। कई बार प्रकाशक की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते है। जिस कारण उनकी पांडुलिपी अप्रकाशित ही रह जाती है। ऐसी कई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए लाएं है स्पेशल स्वयं प्रकाशन योजना। इस योजना को इस प्रकार तैयार किया गया है कि लेखक पर आर्थिक बोझ न पड़े और साथ ही लेखक को उचित रॉयल्टी भी मिले। हमारा प्रयास है कि हम लेखकों का अधिक से अधिक सहयोग करें।
जवाब देंहटाएंअधिक जानकारी के लिए विजिट करें - https://www.prachidigital.in/special-offers/