कैसे हो साजन मेरे
ना कोई संदेशा आया है
झूठी हँसी से चेहरा सजा है
मन का पुष्प मुरझाया है
आँखे भी ना साथ निभाए
रह-रह आँसू झलक आया है
पिया मिलन को तरसे जियरा
ना कोई संदेशा आया है
बाट जोहती दिन और रैना
थक कर हार गए मोरे नैना
थोड़ी सुध -बुध यहाँ की भी ले लो
माँ-बाबूजी का हालचाल ही पूछ लो
ऐसे भी क्या व्यस्त हो रहते
तुम बिन हम क्या कुछ है सहते
बिन पिया के जीना है कितना मुश्किल
पड़ोसिन चुभाती है हर वक्त तानों के कील
घूँट-घूँट तानों के पी रही हूँ
माँ-बाबूजी और बच्चों के लिए जी रही हूँ
चलो छोडो सबकुछ अब
लौट यहाँ तुमको आना है
बहुत हो गई ये रुसवाई
आ जाओ एक बार पिया जी
अब दूर न तुमको जाना है
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (21-02-2018) को
जवाब देंहटाएं"सुधरा है परिवेश" (चर्चा अंक-2886) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"
प्रेम मय रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ...
घूँट-घूँट तानों के पी रही हूँ
जवाब देंहटाएंमाँ-बाबूजी और बच्चों के लिए जी रही हूँ
बहुत ख़ूब ...