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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

kaise ho sajan mere कैसे हो साजन मेरे






कैसे हो साजन मेरे 
ना कोई संदेशा आया है
झूठी हँसी से चेहरा सजा है
मन का पुष्प मुरझाया है 
आँखे भी ना साथ निभाए 
रह-रह आँसू झलक आया है 
पिया मिलन को तरसे जियरा 
ना कोई संदेशा आया है
बाट जोहती दिन और रैना 
थक कर हार गए मोरे नैना
थोड़ी सुध -बुध यहाँ की भी ले लो
माँ-बाबूजी का हालचाल ही पूछ लो
ऐसे भी क्या व्यस्त हो रहते 
तुम बिन हम क्या कुछ है सहते
बिन पिया के जीना है कितना मुश्किल
पड़ोसिन चुभाती है हर वक्त तानों के कील
घूँट-घूँट तानों के पी रही हूँ
माँ-बाबूजी और बच्चों के लिए जी रही हूँ
चलो छोडो सबकुछ अब
लौट यहाँ तुमको आना है 
बहुत हो गई ये रुसवाई 
आ जाओ एक बार पिया जी

अब दूर न तुमको जाना है  



5 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (21-02-2018) को
    "सुधरा है परिवेश" (चर्चा अंक-2886)
    पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. घूँट-घूँट तानों के पी रही हूँ
    माँ-बाबूजी और बच्चों के लिए जी रही हूँ
    बहुत ख़ूब ...

    जवाब देंहटाएं

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