सफेदपोश पर दाग और सडकों पर गढ्ढे
अच्छे नहीं लगतें .....
पर हुआ यही था सफ़ेद वस्त्रधारी
आएं थे हमारे घर में और थमा गए वादों की
एक लंबी फेहरिश्त सड़क ठीक , पानी सही
मँहगाई कम और ना जाने क्या
क्या- क्या - क्या
उनके लड्डुओं में मिठास बहुत थी
इसलिए जीता भी दिए गए...
पर सड़क आज भी जस की तस .....
सर्दियों और गर्मियों में ओढा देतें हैं
ये सडकों पर नकाब
पर बारिश की पहली ही बूंदों के साथ
धूल जातें हैं सारे वादें
और भर जाता हैं उन गढ्ढों में पानी
कुछ समझदार लोगों ने
अपने घर और आसपास के
सडकों की मरम्मत करवा ली है
ताकि उनके घर आनेवाले मेहमानों के
सामने उनकी नाक ना कटे
सफदपोशों का क्या....
उनके पास तो केवल जीभ ही होती है
जो वोट माँगते वक्त लपालप चलती है
नाक तो होती नहीं...
जो कट जाने का डर हो ....
कुछ दुकानदारों ने
बेसिर- पैर के वादों का इंतजार ना करते हुवे
अपने और ग्राहकों की सुविधा को देखते हुवे
आसपास की सड़कें दुरुस्त करवा ली
इस तरह से कुछ सड़कों को राहत मिली
पर बची हुई वो बहुत सारी सड़कें
जिनपर ट्रैफिक जाम भरा पड़ा है
और उसमे फँसे लोग
गढ्ढों में गिरनेवाले लोग
अब भी आपको पुकार रहें हैं...
क्योंकि आम जनता ने
अपने-अपने बजट से अपनी-अपनी सड़क
तो ठीक कर ली है...
बस अब आपकी बारी का इन्तजार है..
बजट तो आपके पास भी हैं ना ?????