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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

naari jivan नारी जीवन


सुबह पांच बजे उठकर 
झट फटाफट करती सारे काम
तो बनती है तुरंत झटपटाती कविता..
जब आफिस जाने के लिए बैठती बस में 
और लेती २ पल सुकून की सांसे 
तो बनता है सुकून का एक दोहा
बीती दोपहर जब घर लौटती
सुबह के अधूरे कामो में फिर से 
डट जाती, तो बनती है
फिर कोई छंदमुक्त अभिवक्ति
गरम रोटियों के सिकते ही
बनता है एक गरमागरम ग़ज़ल
पर हाँ रोटियों के जल जाने से भी
हो जाती है उदास गजल
मेज पर पड़ी वो डायरी
भी इंतजार कर सो जाती है
की, कब फुर्सत के पल पायेगी 
उसकी सहेली ,
और तब करेगी उससे दिन भर 
की सारी बातें,,
अपने बच्चे की किलकारी में
वो महसूस करती है 
सभी बच्चों के सुख और दुःख
फिर मन रचता है
एक ममतामयी रचना
रात में बिस्तर पर टेक लगा
कमर पर हाथ धर
जब भरती है आहे,,,
तो बनता है 
एक दर्दभरा गीत..
इस तरह एक नारी रचती है
अपना घर-संसार
अपने भाव अपनी रचना..
और रहती है सदा प्रसन्न 
क्यूंकि वो सागर है 
और सागर की भांति 
उसका ह्रदय है विशाल
जिसमे सबकुछ समाहित है..
और अपने प्रेम की लहरों से 
बस सबको भिगोती है 
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