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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

sanyukt pariwar संयुक्त परिवार


बात हो गई अब ये पुरानी
जब दादी सुनाती थी कहानी

दादा के संग बागों में खेलना
रोज सुबह शाम सैर पर जाना

भरा पूरा परिवार था प्यारा
दादा दादी थे घर का सहारा

बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी

दादी की कहानी ग़ुम है
दादा जी अब कमरे में बंद है

गुमसुम हो गई उनकी जवानी
बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी

बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते

रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है

एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।

बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
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