बात हो गई अब ये पुरानी
जब दादी सुनाती थी कहानी
दादा के संग बागों में खेलना
रोज सुबह शाम सैर पर जाना
भरा पूरा परिवार था प्यारा
दादा दादी थे घर का सहारा
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
दादी की कहानी ग़ुम है
दादा जी अब कमरे में बंद है
गुमसुम हो गई उनकी जवानी
बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी
बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते
रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है
एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी