कैसा बाँवरा था वो कविताओं का इतना शौक रखता था नाम रीना है मेरा कविता बना दिया उसने... प्रेम बसाये आँखों में जब भी देखती हूँ उसे समझाना कुछ और चाहती हूँ पर देखो बाँवरे ने क्या समझा छोटी सी आँखों में मेरे झील और समुंदर भरकर कविता बना दिया उसने..... जब भी उससे कुछ कहती हूँ सुनता नहीं वो शब्द मेरे खुलते -बंद होते ..... होंठो को देखा गुलाब की पंखुड़ियों का नाम देकर कविता बना दिया उसने.... सोचा चूड़ियाँ झनकाऊं बिंदिया चमकाऊं थोड़ा उनका मन बहकाऊं बाँवरे ने मुझको ही बहका दिया चूड़ियों की झंकार सूनी सुना ना मेरे दिल की धड़कन बिंदिया को चंदा -सूरज की उपमा दे दी और मुझको कविता बना दिया उसने.. उस नादान की नादानी से उदास जब हो जाती हूँ बंधे केशुवों को खोलकर उदास चेहरा जब छुपाती हूँ काली घटा ,बादल , रेशम जाने क्या - क्या नाम देकर मेरे केशुवों पर कविता बना दिया उसने.. मुझे कविता बना दिया उसने... मुझे कविता बना दिया उसने... |
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गुरुवार, 21 जून 2012
Mujhe Kavita Bana Diya Usane मुझे कविता बना दीया उसने
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