देखो ऐसे लिखती हूँ मैं ख़त
तुम भी देखो और बताओ ठीक तो है ना....
हर बार लिखती हूँ ख़त ये सोचकर
की,शायद इस बार आ जाये कोई जवाब.
यादों की कलम से लिखना शुरू करती हूँ
हर बार भर देती हूँ अपनी सारी भावनाए उसमे......
अरमानों के चाँद तारे से थोडा सजा भी देती हूँ ......
फिर उसमे खुशबू भी झिड़क देती हूँ ,,,,,,
उन खुबसूरत लम्हों की
जो सोचा है मै बिताउंगी उनके साथ .......
जब कभी वो आएंगे मेरे पास ......
कुछ सपने भी लिख देती हूँ ,,,
कुछ प्यारभरे ,,मधभरे गीतों की पंक्तियाँ भी लिख देती हूँ
उन्हें प्रलोभन देने के लिए
हाँ- हाँ श्रृंगार का भी इशारा दे देती हूँ
ये भी तो कम नहीं है...
एक बार अच्छे से दोहराती हूँ कहीं कुछ छुट ना जाये
फिर एक सुन्दर से लिफाफे में रखकर भेज देती हूँ उनके पास
इस आशा में की शायद
इस बार आये कोई जवाब,,,,,
ऐसे लिखती हूँ मै ख़त .....
ठीक तो है ना
कहीं कुछ रह तो नहीं गया .....
अपने आप से ही सवाल करती हूँ
प्रिय |||| तेरे जवाब का मै इंतजार करती हूँ ....
vastavik jindagi se is rachana ka koi sarokaar nahi hai....