भ्रम से लेकर मैं तक का सफ़र...एक तपस्या है जो करते हैं वो लोग
जो किसी का अनचाहा रिश्ता बन जाते है....और इस अनचाहे रिश्ते में प्यार घोलने की एक कोशिश है क्यूंकि रिश्ते बनते है जुड़ने के लिए ना की टूट कर बिखर जाने के लिए..
भ्रम
भ्रम है एक - दूजे के हैं हम
भ्रम है ये रिश्ता पक्का है
तो ठीक तो हैं ना
जी रहे हो तुम भी
जी रही हूँ मैं भी
और क्या सब ठीक तो है
आस
भ्रम में जी तो रही हूँ
पर आस का दीया जलाकर
और निभा रही हूँ अपना
कर्तव्य पूरी निष्ठां से
विश्वास
इस विश्वास के साथ
की मेरा समर्पण और निश्छल प्रेम
एक दिन बदल देगा तुम्हें
विश्वास है की तुम बदलोगे जरुर
जरुर बदलोगे ....
मैं
जिस दिन मेरे विश्वास पर
तुम्हारे प्यार की मुहर लग जाएगी
उस दिन मेरा ये अकेला "मैं"
"हम" में बदल जायेगा
और मेरे भ्रम की तपस्या
सार्थक होगी.....
कभी - कभी भ्रम में जीना भी सुखद और सार्थक होता है...
बस उनमें मिठास घोलने की कोशिश तो होनी ही चाहिए
हैं ना ??