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शुक्रवार, 6 सितंबर 2013
रविवार, 1 सितंबर 2013
Kankrit ke jangal कंकरीट के जंगल
कभी इन्हीं जगहों पर हुआ करते थे
बड़े- बड़े जड़ -लताओंवाले वृक्ष
सुगन्धित फूलों के पौधे
हरियाली फैलाती दूर तक बिछी घास
तरह -तरह के पंछी और उनकी मीठी आवाज.....
अपने अन्दर कई खूबसूरती और
रहस्य को छुपाये ये जंगल .......
और इसके पास छोटे छोटे
घरों में रहनेवाले सामान्य लोग
जो सारा दिन काम करने के बाद
इन वृक्षों के निचे बैठ कुछ पल को
ठंडी साँस लेते थे.......
परन्तु बदलते परिवेश और आधुनिकता ने चारों ओर
कंकरीट के जंगल बना दिए है
अब तो चारों ओर केवल कंकरीट
की इमारतों का ही कब्ज़ा है ......
इन इमारतों की खूबसूरती में बिकते लोग
कोई बनाने की चाहत में बिक रहा है
मानवीयता बेच के संवेदनहीन हो रहा है ......
तो कोई खरीदने की चाह में
खुद को बेंच रहा है.........
और इस खूबसूरती में रहनेवालों की ठाठ ही अलग है
बंद खिड़की और दरवाजों के अन्दर चाहे जो है......
पर बहार निकलते ही ये बन जाते है
बड़े साहब और मेम साहेब
और पहन लेते है आधुनिकता के
काले कोट बड़े साहेब जी
और डिजाइनर साड़ी में मेम साहेब जी.....
एकदम खानदानी .....
बहुत ही सुन्दर है ये कंकरीट के जंगल....
और इसके लोग....
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