कितने सवाल थे तुम्हारे
एक मैं ही क्यूँ
और भी तो कई है इस जहाँ में
क्यूँ चुना है तुमने मुझे
अपने लिए बताओ ना ???
अब क्या कहूँ
क्यूँ चुना है तुम्हें
क्यूँ चाहा है तुम्हें...
तुम्हारा ये पागलपन...
बार -बार ये सवाल पूछना
मेरी आवाज से ही
तुम्हारा पहचान लेना
की, क्या है मेरे मन में
बस
और कुछ पूछना है तो
मुझसे नहीं मेरी आँखों से पूछो
जो कुछ किया है उसने किया है
तुम्हें देखकर पलकें छपकने
को तैयार ही ना था.
एक भी पल ना गवाँकर
भर लिया तुम्हें अपनी आँखों में
मुझसे नहीं मेरे दिल से पूछो
जो तुम्हें देखकर जोर - जोर से
धड़कने लगा,,
कितना समझाया इसे फिर भी
तुम्हें बसा लिया अपने दिल में
और देखो तुम इस दिल की
धड़कन बन गए...
मुझसे नहीं मेरे मन से पूछो
जो तुम्हें ही सोचता रहता था
इस मन ने तो और भी
आदत ख़राब कर दी थी मेरी...
मुझसे नहीं मेरे ख्वाबों से पूछो
जिसमे रोज तुम्हारा
आना जाना था..
मुझसे नहीं मेरी बेचैनियों से पूछो
जो तुम्हें एक नजरभर
देख लेने को बेताब था...
उफ्फ्फ ||||
कितने सवाल है तुम्हारे..
दे दिए जवाब
तुम्हारे सवालों के...
अब ना पूछना कभी..
की क्यूँ चाहा है तुम्हें..
क्यूँ बनाया है तुम्हें अपना...