वो जन्म से वैश्या नहीं
ना किया है उसने कोई पाप
घरवालों के भविष्य की खातिर
झेल रही संताप
बाबा उसका एकदम शराबी
माँ के ह्रदय में है खराबी
छोटे छोटे भाई - बहनों की
खातिर उसने घुँघरी पहने
अपनी अस्मत हर रात गंवाती
फिर भी दिनभर मुस्काती
उस बेटी के हिम्मत के क्या कहने
दिन में माँ - बाबा की बिटिया है
भाई- बहनों की दीदी
रात में बन जाती है वो
लाली और सुरीली
जीवन उसका जैसे अभिशाप
नहीं बचा पाई वो बिटिया
खुद को करने से ये पाप
फिर भी आस है उसके मन में
की एकदिन उसके भाई- बहन
समझेंगे उसके त्याग,पीड़ा और जज्बात
और दिलाएंगे उसको
इस दलदल से निजात
जीती है लेकर बस यही आस
और बेचती है अपना जिस्म हर रात।
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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015
शनिवार, 24 अक्तूबर 2015
sanyukt pariwar संयुक्त परिवार
बात हो गई अब ये पुरानी
जब दादी सुनाती थी कहानी
दादा के संग बागों में खेलना
रोज सुबह शाम सैर पर जाना
भरा पूरा परिवार था प्यारा
दादा दादी थे घर का सहारा
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
दादी की कहानी ग़ुम है
दादा जी अब कमरे में बंद है
गुमसुम हो गई उनकी जवानी
बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी
बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते
रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है
एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
मंगलवार, 15 सितंबर 2015
Pyari bitiya प्यारी बिटिया
बाबुल की सोन चिरैया
अब बिदा हो चली
महकाएगी किसी और का आँगन
वो नाजुक सी कली
माँ की दुलारी
बिटिया वो प्यारी
आँसू लिए आँखों में
यादें लिए मन में
पिया घर चली
ओ भैय्या की बहना
ख्याल अपना रखना
मुरझा ना कभी जाना तू
ओ प्यारी सी कली
ले जा दुआएँ
और ढ़ेर सारा प्यार
बिटिया तेरे जीवन में आए
खुशियों की फुहार
पिया घर सजाना
तू पत्नी धर्म निभाना
खुश रहना तू मेरी बिटिया
ना होना कभी उदास
*****************************
गुरुवार, 6 अगस्त 2015
naari jivan नारी जीवन
सुबह पांच बजे उठकर
झट फटाफट करती सारे काम
तो बनती है तुरंत झटपटाती कविता..
जब आफिस जाने के लिए बैठती बस में
और लेती २ पल सुकून की सांसे
तो बनता है सुकून का एक दोहा
बीती दोपहर जब घर लौटती
सुबह के अधूरे कामो में फिर से
डट जाती, तो बनती है
फिर कोई छंदमुक्त अभिवक्ति
गरम रोटियों के सिकते ही
बनता है एक गरमागरम ग़ज़ल
पर हाँ रोटियों के जल जाने से भी
हो जाती है उदास गजल
मेज पर पड़ी वो डायरी
भी इंतजार कर सो जाती है
की, कब फुर्सत के पल पायेगी
उसकी सहेली ,
और तब करेगी उससे दिन भर
की सारी बातें,,
अपने बच्चे की किलकारी में
वो महसूस करती है
सभी बच्चों के सुख और दुःख
फिर मन रचता है
एक ममतामयी रचना
रात में बिस्तर पर टेक लगा
कमर पर हाथ धर
जब भरती है आहे,,,
तो बनता है
एक दर्दभरा गीत..
इस तरह एक नारी रचती है
अपना घर-संसार
अपने भाव अपनी रचना..
और रहती है सदा प्रसन्न
क्यूंकि वो सागर है
और सागर की भांति
उसका ह्रदय है विशाल
जिसमे सबकुछ समाहित है..
और अपने प्रेम की लहरों से
बस सबको भिगोती है
शनिवार, 1 अगस्त 2015
tere sath तेरे साथ
तेरे साथ बिता वो पल, जब भी याद आता है
ये मेरा मन पगला , सब कुछ भूल जाता है
हवाओं का फिजाओं का ये तुझसे कैसा नाता है
जब भी लेती हूँ मैं सांसे, मन महक जाता है
करू जतन कितना भी मैं,ना जाने क्या हो जाता है
मैं जब भी लिखती हूँ कुछ,पहले तेरा ही नाम आता है
तेरे अहसास का वो पहला स्पर्श, जब भी याद आता है
हो जातीं हैं साँसे सुरमई, मन गुदगुदाता है
मैं जब भी सोचती हूँ तुझको, मन मुस्कुराता है
पर तुझे ही सोचना, मेरे दिल को लुभाता है
शनिवार, 18 जुलाई 2015
paritykta परित्यक्ता
घूरती है उसे हजारों की निगाहें
हर निगाह में दोषी वो ही
हर निगाह तैयार है
बाण बनकर
हजारों सवालों के तीर
छोड़ने को तैयार
क्यूँकर हुआ ऐसा
क्या किया उसने
कुछ तो खोट
उसमे ही होगी
तभी तो हो गयी वो
" परित्यक्ता "
हाँ वो परित्यक्ता है
क्यूंकि नहीं सह पाई वो
प्रताड़ना, उलाहना
उस बेशरम शराबी की
जिसे लोगो ने उसका
पति परमेश्वर बना दिया था
हाँ वो छोड़ी गई है
या खुद छोड़ आई है
उस नर्क को
क्या फर्क पड़ता है इससे..
बात तो सिर्फ इतनी है
की वो अब "परित्यक्ता" है...
सोमवार, 8 जून 2015
Prem Geet प्रेम गीत
तुझबिन जीवन सुना- सुना
जैसे कोई अधूरा सपना
सपनों को पूरा कर जाओ
एक बार तो साजन मिलने आओ
चारो ओर है पसरी उदासी
तेरे दरस को है अखियाँ प्यासी
सुना मन का अँगना है
कोई फूल प्रेम के खिला जाओ
सपनों को पूरा कर जाओ
एक बार तो साजन मिलने आओ
नहीं चाहिए गाड़ी- बंगला
नहीं चाहिए सोने का कंगना
सिर्फ तेरी ही चाहत है
मेरी चाहत को समझ भी जाओ
सपनों को पूरा कर जाओ
एक बार तो साजन मिलने आओ
तन- तरसे मन- तरसे
अँखियाँ जोर-जोर बरसे
घनी अँधेरी रात छाई है
एक दीप प्रेम के जला जाओ
सपनों को पूरा कर जाओ
एक बार तो साजन मिलने आओ
शनिवार, 7 मार्च 2015
durangi दुरंगी
प्रेम के अर्थ को
वासना के अनर्थ
से जोड़नेवाला
वो दुरंगी चेहरेवाला
दानवी राजकुमार
यहीं - कहीं है
आस - पास
यदा- कदा
कभी टकराओ
तो संभलना
हे कोमल हृदयवाली बेटियों.....
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शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
geet khushi ke गीत ख़ुशी के
जो गीत कभी तुम गाते थे
वो गीत ख़ुशी के गाउँ मैं
थोड़ा तुम मुझको समझो प्रिय
थोड़ा खुदको तुम्हें समझाऊँ मैं
किसके प्रेम का भार है कितना
प्रेम को तराजू में क्यूँ तौले
सच्चे प्रेम का अर्थ दो दिलो का मिलना है
आज अब हम भी एक-दूजे के हो ले
कभी गढ़ों तुम प्रेम की भाषा
कभी मुखरित हो जाऊँ मैं
जो गीत कभी तुम गाते थे
वो गीत ख़ुशी के गाउँ मैं....
ना अहम ना छल - कपट हो
ना ही हो अविश्वास जरा सा
प्रेम भावना हो सच्ची दोनों के मन में
कोई ना थोड़े किसी की आशा
प्रेम पंछी बन संग तुम्हें ले
नील गगन में उड़ जाऊँ मैं
जो गीत कभी तुम गाते थे
वो गीत ख़ुशी के गाउँ मैं....
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रविवार, 8 फ़रवरी 2015
mithi si talkhiyan -3 मीठी सी तल्खियाँ - ३
पुस्तक - मीठी सी तल्खियाँ - ३
संपादक - करीम पठान "अनमोल"
प्रीति "अज्ञात "
प्रीति "अज्ञात "
प्रकाशन - दृष्टि प्रकाशन
आवरण चित्र - मैं खुद smile emoticon रीना मौर्य smile emoticon
मीठी -सी तल्खियाँ भाग १ और २ की सफलता के पश्चात अब भाग ३ आप सबके मध्य स्नेह पाने आ चुकी है इसका संपादन आदरणीय करीम पठान "अनमोल " जी व आदरणीया प्रीति "अज्ञात " जी ने किया है इस संग्रह में दस चुने हुवे प्रतिभाशाली कवियों की श्रेष्ठतम रचनाएँ सम्मिलित है कविता , गीत, ग़ज़ल, दोहे ,छंद आपको मुग्ध कर देंगे. इस संग्रह में सबसे पहले आप मिलेंगे ...
"सुधीर मौर्या" जी से सुधीर जी ने अपनी कविताओ से रिंकल के दर्द को शब्द दिए है "
ए विधाता /ओ विधाता
क्यों लिख दिए इतने दुःख /
भाग्य में मेरे/.. दिल्ली में दरिंदगी का शिकार हुयी दामिनी को हौसला देती कुछ पंक्तियाँ
तुझे लड़ना है मौत से/
और देनी होगी शिकस्त/
उठ और बिजली की तरह चमक/
अपने नाम को सार्थक कर ...प्रतापगढ़ में शहीद हुवे पुलिस अफसर की पत्नी के दर्द को शब्द देते हुवे..ओह ईश्वर /क्या यही है तेरा दस्तूर/की इमांन पर चलानेवालों को/ तू खून से लाल कर दे.
ए विधाता /ओ विधाता
क्यों लिख दिए इतने दुःख /
भाग्य में मेरे/.. दिल्ली में दरिंदगी का शिकार हुयी दामिनी को हौसला देती कुछ पंक्तियाँ
तुझे लड़ना है मौत से/
और देनी होगी शिकस्त/
उठ और बिजली की तरह चमक/
अपने नाम को सार्थक कर ...प्रतापगढ़ में शहीद हुवे पुलिस अफसर की पत्नी के दर्द को शब्द देते हुवे..ओह ईश्वर /क्या यही है तेरा दस्तूर/की इमांन पर चलानेवालों को/ तू खून से लाल कर दे.
हितेश शर्मा :-हितेश शर्मा जी ने अपनी कविता "माँ" में माँ के प्रति प्रेम को सुन्दर शब्दों में पिरोया है
बड़ा हो गया हूँ/
है लगता मुझको फिर जाने क्यों
/हर मुश्किल में छोटे बच्चे जैसी/
याद आती है माँ.
है लगता मुझको फिर जाने क्यों
/हर मुश्किल में छोटे बच्चे जैसी/
याद आती है माँ.
प्रेमरस से सराबोर एक सुन्दर सी गजल की कुछ पंक्तियाँ ,,
तुझको खोकर फिर से पाना अच्छा लगता है/
यूँ ही तुमको सुनते जाना अच्छा लगता है.
तुझको खोकर फिर से पाना अच्छा लगता है/
यूँ ही तुमको सुनते जाना अच्छा लगता है.
कुछ पंक्तियाँ कविता "तुम ही बता दो" से
" तुम ही बता दो की तुममे क्या है / जो हम दीवाने से हो रहे हैं /तुम्हारे चहरे , तुम्हारी जुल्फों/तुम्हारी आँखों में खो रहे है.
कुछ पंक्तियाँ कविता " तुम आओगे से"
" तुम आओगे फूल खिलेंगे डाली-डाली/
तुम आओगे होगी पेड़ों पर हरियाली".
" तुम आओगे फूल खिलेंगे डाली-डाली/
तुम आओगे होगी पेड़ों पर हरियाली".
पुष्पेन्द्र यादव:- इस संग्रह में पुष्पेन्द्र यादव जी की मुक्तक,गीत,गजलों का समावेश है जो आपके ह्रदय को स्पर्श करते हुवे आपके मुख से वाह की गूंज होगी. मुक्तक
" किंचित नहीं कामना मुझको महलों में आवास मिले
/ चाह नहीं है मन में मुझको राज विलास मिले/
मैं किसान हूँ मेरे ईश्वर ,यही कामना है मेरी/
शस्य -श्यामला धरती माँ हो/
नील मेघ आकाश मिले.
/ चाह नहीं है मन में मुझको राज विलास मिले/
मैं किसान हूँ मेरे ईश्वर ,यही कामना है मेरी/
शस्य -श्यामला धरती माँ हो/
नील मेघ आकाश मिले.
प्रकृति के रंग को छूती किसानों की मन की बात को कवि ने अतीव सुन्दर शब्दों से इस मुक्तक में उकेरा है. आइये गीतों पर भी नजर डालते हैं
" फूलों का काँटों में खिलना/सौम्य प्रकृति की निठुर कल्पना/
मन के स्वप्निल अरमानों को/
याद किसी की जब आती है/
होकर द्रवित उनींदी आंखियाँ/
नेह अश्रु छलका जाती है/
सांसे करने लगतीं है तब/
प्रिये तुम्हारी मौन साधना.
मन के स्वप्निल अरमानों को/
याद किसी की जब आती है/
होकर द्रवित उनींदी आंखियाँ/
नेह अश्रु छलका जाती है/
सांसे करने लगतीं है तब/
प्रिये तुम्हारी मौन साधना.
अशोक कुमार विशवकर्मा "व्यग्र ":- अशोक जी ने अपनी प्रथम रचना " एक सार्थक तुलना "में प्रकृति के खूबसूरत छणो के साथ अपने जीवन की एक सुन्दर सार्थक तुलना की है कुछ पंक्तियाँ
" इन्द्रधनुष जब अपने/ यौवन पर आता है/तब ऐसा लगता है/मानों मेरा जीवन/सतरंगी हो गया..
कवि के एक कविता " मैं शापित हूँ से कुछ पंक्तियाँ
"मैं जिंदगी से जीवन नहीं चाहता/
मृत्युं से मौत नहीं चाहता/
किसी से सांत्वना या सहानुभूति भी नहीं चाहता हूँ /
मैं हवा में खुशबू की तरह घुलना चाहता हूँ/
धुप में पत्थरों की तरह सिंझना चाहता हूँ..
मृत्युं से मौत नहीं चाहता/
किसी से सांत्वना या सहानुभूति भी नहीं चाहता हूँ /
मैं हवा में खुशबू की तरह घुलना चाहता हूँ/
धुप में पत्थरों की तरह सिंझना चाहता हूँ..
निशा चौधरी :- निशा चौधरी जी की कविता में भावनाओं का अथाह सागर है, उनकी एक रचना जो कोमल मन से परिपूर्ण हो एक सवाल कराती है-
" मैंने बारिश को नहीं
,बारिश ने मुझे चुन लिया,
छलकती रही नयनों के आसमान से/
सूरज .. वो सिंधुरीवाला/
धूल-धुलकर गिरता रहा जमीं पर/
जो अक्स गढ़ गया/
वो तुम थे या मैं थी??' एक समय ऐसा भी आता है जीवन में जब हम बहुत कुछ बोलना चाहते है पर बोल नहीं पते उन्हीं अनकहे बातों को शब्द देती उनकी ये रचना "उन अनकहे शब्दों का अंधकार /बहुत कुछ छिपाए हुवे है अपने गर्भ में/ उनका शोर गूंजता -सा, हर ओर / जो शब्द नहीं कहते , चुप्पी कह जाया करती है"
" मैंने बारिश को नहीं
,बारिश ने मुझे चुन लिया,
छलकती रही नयनों के आसमान से/
सूरज .. वो सिंधुरीवाला/
धूल-धुलकर गिरता रहा जमीं पर/
जो अक्स गढ़ गया/
वो तुम थे या मैं थी??' एक समय ऐसा भी आता है जीवन में जब हम बहुत कुछ बोलना चाहते है पर बोल नहीं पते उन्हीं अनकहे बातों को शब्द देती उनकी ये रचना "उन अनकहे शब्दों का अंधकार /बहुत कुछ छिपाए हुवे है अपने गर्भ में/ उनका शोर गूंजता -सा, हर ओर / जो शब्द नहीं कहते , चुप्पी कह जाया करती है"
संजय तनहा :- संजय तनहा जी की गजलों ने संग्रह को अति शोभायमान किया है इनकी गजलों में जहाँ एक ओर प्रेमभाव है, वाही दुश्मनो के लिए बगावत भी है, मोहब्बत है, सियासत है वहीँ एक आम आदमी की भावनाओं को भी सुन्दर शब्दों में सजाया है आइये रूबरू होते है कुछ नज्मो से
" उम्र भर के लिए तू हंसा दे मुझे / आज ऐसा लतीफा सुना दे मुझे"
" रहा हूँ मैं सदा बागी, बगावत खून में है,/
सितम के सामने डाटना ये आदत खून में है"
" रहा हूँ मैं सदा बागी, बगावत खून में है,/
सितम के सामने डाटना ये आदत खून में है"
" अभी जिन्दा है लेकिन मुहब्बत मार डालेगी,
जमाना बन गया दुश्मन बगावत मार डालेगी"
जमाना बन गया दुश्मन बगावत मार डालेगी"
" इंसान की सब खूबियाँ सीख ली है,
वो चलवाली नीतियाँ सीख ली है "
वो चलवाली नीतियाँ सीख ली है "
पूरन चौहान सिंह:- पूरन जी ने अपनी कविता में दिल्ली की लड़कियों व् महिहालों की व्यथा उनकी पीड़ा को सहज शब्दों में व्यक्त किया है
" डरी सहमी दुबकी हुयी लड़की हूँ मैं/
यातनाओं के गढ़ दिल्ली की लड़की हूँ मैं"
" डरी सहमी दुबकी हुयी लड़की हूँ मैं/
यातनाओं के गढ़ दिल्ली की लड़की हूँ मैं"
पूरन जी की कविताओ में विश्वास झलकता है"
"उठना पाए तो क्या/
हम कभी झुके नहीं/
चल न पाए तो क्या,
हम कभी रुके नहीं"
"उठना पाए तो क्या/
हम कभी झुके नहीं/
चल न पाए तो क्या,
हम कभी रुके नहीं"
इनकी एक बहुत ही खूबसूरत नज्म "
"गुमसुम रहकर, दर्द सहकर/
जीने की आदत डाला कीजिये,
खुशियाँ बेवफा होती है,
ग़मों से दोस्ती पाला कीजिये."
"गुमसुम रहकर, दर्द सहकर/
जीने की आदत डाला कीजिये,
खुशियाँ बेवफा होती है,
ग़मों से दोस्ती पाला कीजिये."
शिवनारायण यादव:- शिवनारायण जी बहुमुखी रचनाकार है इस पुस्तक में उनके दोहा ,छंद,गीत गजल,कुण्डलियाँ पढने का सुअवसर प्राप्त हुआ. " वाणी ही वरदान है,प्राणवत है प्रेम/पागल जीवन गा उठा,बरस रहा है हेम/बरस रहा है हेम/प्राण के डीप जलाये/घोर विपद के बीच/चोट खा-खा के गाए/जीवन का सुचिहास,प्राण का प्राण है प्राणी/जीवन ज्योत अखंड,प्रेम की फुरती वाणी / एक प्रेमगीत जो आपके ह्रदय को अवश्य मुग्ध कर देगी
" जब पायल छनके छनन-छनन
उस वक्त चले आना
घुंघरू की धुन में घनन-घनन
उस वक्त चले आना
लो मैं आँखे बंद किए
अब गीत सजती हूँ
तेरी धुनकी में खोई
तुझको ही गाती हूँ.. "
" जब पायल छनके छनन-छनन
उस वक्त चले आना
घुंघरू की धुन में घनन-घनन
उस वक्त चले आना
लो मैं आँखे बंद किए
अब गीत सजती हूँ
तेरी धुनकी में खोई
तुझको ही गाती हूँ.. "
धीरज श्रीवास्तव जी :- धीरज जी के गीतों की जितनी तारीफ की जाए कम ही है इनके गीतों को जब आप पढने लगेंगे , तो पढ़ना छोड़ गुनगुनाने लगेंगे.
" मन का है विश्वास तुम्हीं से
मेरी जीवित आस तुम्हीं से
मुझपर हो उपकार सरीखी
अम्मा के व्यवहार सरीखी
दीप तुम्हीं हो दीवाली की
होली के त्यौहार सरीखी
सारा है मधुमास तुम्हीं से
मन का है विश्वास तुम्हीं से"
एक और गीत की कुछ पंक्तियों से रूबरू करवाती हूँ एक प्रेममय सुन्दर गीत ,
"लिख रहा पत्र मैं आज तुम्हें
जो शायद तुमको मिल जाए
इस मन के सूने आँगन में
इक पुष्प प्यार का खिल जाए "
" मन का है विश्वास तुम्हीं से
मेरी जीवित आस तुम्हीं से
मुझपर हो उपकार सरीखी
अम्मा के व्यवहार सरीखी
दीप तुम्हीं हो दीवाली की
होली के त्यौहार सरीखी
सारा है मधुमास तुम्हीं से
मन का है विश्वास तुम्हीं से"
एक और गीत की कुछ पंक्तियों से रूबरू करवाती हूँ एक प्रेममय सुन्दर गीत ,
"लिख रहा पत्र मैं आज तुम्हें
जो शायद तुमको मिल जाए
इस मन के सूने आँगन में
इक पुष्प प्यार का खिल जाए "
कृष्णनंदन मौर्य:- कृष्णनंदन मौर्य जी ने अपने गीतों में हर रंग हर भाव को सुन्दर सहज शब्दों में प्रस्तुत किया किया है
" संग तुम्हारे सपने बुनना
कितना मन को भाता है
जग से तुमको अपना कहना
कितना मन को भाता है "
दूषित राजनीती पर व्यंग करती रचना की कुछ पंक्तियाँ,
स्वार्थ - बुझे पासे/फिंकते कब से चौसर पर/नग्न-छुधित जनतंत्र/हारता हर अवसर पर.
स्वार्थ के चलते न्याय और अन्याय के बीच झुझती मनोव्यथा,
"अंधे न्यायलय को
सच का पांच गाँव भी नहीं गवारा
अपने-अपने स्वार्थ सगे सब
बात न्याय की कौन कहे अब
जिसकी हित गँठ गया जिधर भी
गरिमाये बह चली उसी ढब
बिछी जिरह में छल की चौसर
कटघर में विश्वास बिचारा..."
" संग तुम्हारे सपने बुनना
कितना मन को भाता है
जग से तुमको अपना कहना
कितना मन को भाता है "
दूषित राजनीती पर व्यंग करती रचना की कुछ पंक्तियाँ,
स्वार्थ - बुझे पासे/फिंकते कब से चौसर पर/नग्न-छुधित जनतंत्र/हारता हर अवसर पर.
स्वार्थ के चलते न्याय और अन्याय के बीच झुझती मनोव्यथा,
"अंधे न्यायलय को
सच का पांच गाँव भी नहीं गवारा
अपने-अपने स्वार्थ सगे सब
बात न्याय की कौन कहे अब
जिसकी हित गँठ गया जिधर भी
गरिमाये बह चली उसी ढब
बिछी जिरह में छल की चौसर
कटघर में विश्वास बिचारा..."
मीठी -सी तल्ख़िया -३ के सभी रचनाकारों, संपादक , प्रकाशक और साहित्य प्रोत्साहन संस्थान को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ....
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बुधवार, 7 जनवरी 2015
meri gudiya मेरी गुड़िया
गुलाबी सी रंगत लिए
जब वो आई आँखों में
ख़ुशी का सागर उमड़ने लगा .....
ममता को और भी
करीब से जाना .....
जब खुद माँ बनी
और माँ की ममता
को पहचाना ......
हर वक्त हर बात पर
दिल घबरा जाता था ....
जब भी रोती मेरी गुड़िया
दिल मेरा सहम जाता था ....
चहरे पर उसके
हरपल मुस्कान आये ....
कभी कोई तकलीफ
न उसे सताए ....
गुड़िया मेरी बड़ी हो जाये
पढ़े - लिखे खूब नाम कमाएँ ....
हर पल दिल से बस
यही दुआ निकलती है ......
खुश रहे मेरी गुड़ियाँ
हर माँ की तो बस
यही चाह रहती है.....
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