पुस्तक - मीठी सी तल्खियाँ - ३
संपादक - करीम पठान "अनमोल"
प्रीति "अज्ञात "
प्रीति "अज्ञात "
प्रकाशन - दृष्टि प्रकाशन
आवरण चित्र - मैं खुद smile emoticon रीना मौर्य smile emoticon
मीठी -सी तल्खियाँ भाग १ और २ की सफलता के पश्चात अब भाग ३ आप सबके मध्य स्नेह पाने आ चुकी है इसका संपादन आदरणीय करीम पठान "अनमोल " जी व आदरणीया प्रीति "अज्ञात " जी ने किया है इस संग्रह में दस चुने हुवे प्रतिभाशाली कवियों की श्रेष्ठतम रचनाएँ सम्मिलित है कविता , गीत, ग़ज़ल, दोहे ,छंद आपको मुग्ध कर देंगे. इस संग्रह में सबसे पहले आप मिलेंगे ...
"सुधीर मौर्या" जी से सुधीर जी ने अपनी कविताओ से रिंकल के दर्द को शब्द दिए है "
ए विधाता /ओ विधाता
क्यों लिख दिए इतने दुःख /
भाग्य में मेरे/.. दिल्ली में दरिंदगी का शिकार हुयी दामिनी को हौसला देती कुछ पंक्तियाँ
तुझे लड़ना है मौत से/
और देनी होगी शिकस्त/
उठ और बिजली की तरह चमक/
अपने नाम को सार्थक कर ...प्रतापगढ़ में शहीद हुवे पुलिस अफसर की पत्नी के दर्द को शब्द देते हुवे..ओह ईश्वर /क्या यही है तेरा दस्तूर/की इमांन पर चलानेवालों को/ तू खून से लाल कर दे.
ए विधाता /ओ विधाता
क्यों लिख दिए इतने दुःख /
भाग्य में मेरे/.. दिल्ली में दरिंदगी का शिकार हुयी दामिनी को हौसला देती कुछ पंक्तियाँ
तुझे लड़ना है मौत से/
और देनी होगी शिकस्त/
उठ और बिजली की तरह चमक/
अपने नाम को सार्थक कर ...प्रतापगढ़ में शहीद हुवे पुलिस अफसर की पत्नी के दर्द को शब्द देते हुवे..ओह ईश्वर /क्या यही है तेरा दस्तूर/की इमांन पर चलानेवालों को/ तू खून से लाल कर दे.
हितेश शर्मा :-हितेश शर्मा जी ने अपनी कविता "माँ" में माँ के प्रति प्रेम को सुन्दर शब्दों में पिरोया है
बड़ा हो गया हूँ/
है लगता मुझको फिर जाने क्यों
/हर मुश्किल में छोटे बच्चे जैसी/
याद आती है माँ.
है लगता मुझको फिर जाने क्यों
/हर मुश्किल में छोटे बच्चे जैसी/
याद आती है माँ.
प्रेमरस से सराबोर एक सुन्दर सी गजल की कुछ पंक्तियाँ ,,
तुझको खोकर फिर से पाना अच्छा लगता है/
यूँ ही तुमको सुनते जाना अच्छा लगता है.
तुझको खोकर फिर से पाना अच्छा लगता है/
यूँ ही तुमको सुनते जाना अच्छा लगता है.
कुछ पंक्तियाँ कविता "तुम ही बता दो" से
" तुम ही बता दो की तुममे क्या है / जो हम दीवाने से हो रहे हैं /तुम्हारे चहरे , तुम्हारी जुल्फों/तुम्हारी आँखों में खो रहे है.
कुछ पंक्तियाँ कविता " तुम आओगे से"
" तुम आओगे फूल खिलेंगे डाली-डाली/
तुम आओगे होगी पेड़ों पर हरियाली".
" तुम आओगे फूल खिलेंगे डाली-डाली/
तुम आओगे होगी पेड़ों पर हरियाली".
पुष्पेन्द्र यादव:- इस संग्रह में पुष्पेन्द्र यादव जी की मुक्तक,गीत,गजलों का समावेश है जो आपके ह्रदय को स्पर्श करते हुवे आपके मुख से वाह की गूंज होगी. मुक्तक
" किंचित नहीं कामना मुझको महलों में आवास मिले
/ चाह नहीं है मन में मुझको राज विलास मिले/
मैं किसान हूँ मेरे ईश्वर ,यही कामना है मेरी/
शस्य -श्यामला धरती माँ हो/
नील मेघ आकाश मिले.
/ चाह नहीं है मन में मुझको राज विलास मिले/
मैं किसान हूँ मेरे ईश्वर ,यही कामना है मेरी/
शस्य -श्यामला धरती माँ हो/
नील मेघ आकाश मिले.
प्रकृति के रंग को छूती किसानों की मन की बात को कवि ने अतीव सुन्दर शब्दों से इस मुक्तक में उकेरा है. आइये गीतों पर भी नजर डालते हैं
" फूलों का काँटों में खिलना/सौम्य प्रकृति की निठुर कल्पना/
मन के स्वप्निल अरमानों को/
याद किसी की जब आती है/
होकर द्रवित उनींदी आंखियाँ/
नेह अश्रु छलका जाती है/
सांसे करने लगतीं है तब/
प्रिये तुम्हारी मौन साधना.
मन के स्वप्निल अरमानों को/
याद किसी की जब आती है/
होकर द्रवित उनींदी आंखियाँ/
नेह अश्रु छलका जाती है/
सांसे करने लगतीं है तब/
प्रिये तुम्हारी मौन साधना.
अशोक कुमार विशवकर्मा "व्यग्र ":- अशोक जी ने अपनी प्रथम रचना " एक सार्थक तुलना "में प्रकृति के खूबसूरत छणो के साथ अपने जीवन की एक सुन्दर सार्थक तुलना की है कुछ पंक्तियाँ
" इन्द्रधनुष जब अपने/ यौवन पर आता है/तब ऐसा लगता है/मानों मेरा जीवन/सतरंगी हो गया..
कवि के एक कविता " मैं शापित हूँ से कुछ पंक्तियाँ
"मैं जिंदगी से जीवन नहीं चाहता/
मृत्युं से मौत नहीं चाहता/
किसी से सांत्वना या सहानुभूति भी नहीं चाहता हूँ /
मैं हवा में खुशबू की तरह घुलना चाहता हूँ/
धुप में पत्थरों की तरह सिंझना चाहता हूँ..
मृत्युं से मौत नहीं चाहता/
किसी से सांत्वना या सहानुभूति भी नहीं चाहता हूँ /
मैं हवा में खुशबू की तरह घुलना चाहता हूँ/
धुप में पत्थरों की तरह सिंझना चाहता हूँ..
निशा चौधरी :- निशा चौधरी जी की कविता में भावनाओं का अथाह सागर है, उनकी एक रचना जो कोमल मन से परिपूर्ण हो एक सवाल कराती है-
" मैंने बारिश को नहीं
,बारिश ने मुझे चुन लिया,
छलकती रही नयनों के आसमान से/
सूरज .. वो सिंधुरीवाला/
धूल-धुलकर गिरता रहा जमीं पर/
जो अक्स गढ़ गया/
वो तुम थे या मैं थी??' एक समय ऐसा भी आता है जीवन में जब हम बहुत कुछ बोलना चाहते है पर बोल नहीं पते उन्हीं अनकहे बातों को शब्द देती उनकी ये रचना "उन अनकहे शब्दों का अंधकार /बहुत कुछ छिपाए हुवे है अपने गर्भ में/ उनका शोर गूंजता -सा, हर ओर / जो शब्द नहीं कहते , चुप्पी कह जाया करती है"
" मैंने बारिश को नहीं
,बारिश ने मुझे चुन लिया,
छलकती रही नयनों के आसमान से/
सूरज .. वो सिंधुरीवाला/
धूल-धुलकर गिरता रहा जमीं पर/
जो अक्स गढ़ गया/
वो तुम थे या मैं थी??' एक समय ऐसा भी आता है जीवन में जब हम बहुत कुछ बोलना चाहते है पर बोल नहीं पते उन्हीं अनकहे बातों को शब्द देती उनकी ये रचना "उन अनकहे शब्दों का अंधकार /बहुत कुछ छिपाए हुवे है अपने गर्भ में/ उनका शोर गूंजता -सा, हर ओर / जो शब्द नहीं कहते , चुप्पी कह जाया करती है"
संजय तनहा :- संजय तनहा जी की गजलों ने संग्रह को अति शोभायमान किया है इनकी गजलों में जहाँ एक ओर प्रेमभाव है, वाही दुश्मनो के लिए बगावत भी है, मोहब्बत है, सियासत है वहीँ एक आम आदमी की भावनाओं को भी सुन्दर शब्दों में सजाया है आइये रूबरू होते है कुछ नज्मो से
" उम्र भर के लिए तू हंसा दे मुझे / आज ऐसा लतीफा सुना दे मुझे"
" रहा हूँ मैं सदा बागी, बगावत खून में है,/
सितम के सामने डाटना ये आदत खून में है"
" रहा हूँ मैं सदा बागी, बगावत खून में है,/
सितम के सामने डाटना ये आदत खून में है"
" अभी जिन्दा है लेकिन मुहब्बत मार डालेगी,
जमाना बन गया दुश्मन बगावत मार डालेगी"
जमाना बन गया दुश्मन बगावत मार डालेगी"
" इंसान की सब खूबियाँ सीख ली है,
वो चलवाली नीतियाँ सीख ली है "
वो चलवाली नीतियाँ सीख ली है "
पूरन चौहान सिंह:- पूरन जी ने अपनी कविता में दिल्ली की लड़कियों व् महिहालों की व्यथा उनकी पीड़ा को सहज शब्दों में व्यक्त किया है
" डरी सहमी दुबकी हुयी लड़की हूँ मैं/
यातनाओं के गढ़ दिल्ली की लड़की हूँ मैं"
" डरी सहमी दुबकी हुयी लड़की हूँ मैं/
यातनाओं के गढ़ दिल्ली की लड़की हूँ मैं"
पूरन जी की कविताओ में विश्वास झलकता है"
"उठना पाए तो क्या/
हम कभी झुके नहीं/
चल न पाए तो क्या,
हम कभी रुके नहीं"
"उठना पाए तो क्या/
हम कभी झुके नहीं/
चल न पाए तो क्या,
हम कभी रुके नहीं"
इनकी एक बहुत ही खूबसूरत नज्म "
"गुमसुम रहकर, दर्द सहकर/
जीने की आदत डाला कीजिये,
खुशियाँ बेवफा होती है,
ग़मों से दोस्ती पाला कीजिये."
"गुमसुम रहकर, दर्द सहकर/
जीने की आदत डाला कीजिये,
खुशियाँ बेवफा होती है,
ग़मों से दोस्ती पाला कीजिये."
शिवनारायण यादव:- शिवनारायण जी बहुमुखी रचनाकार है इस पुस्तक में उनके दोहा ,छंद,गीत गजल,कुण्डलियाँ पढने का सुअवसर प्राप्त हुआ. " वाणी ही वरदान है,प्राणवत है प्रेम/पागल जीवन गा उठा,बरस रहा है हेम/बरस रहा है हेम/प्राण के डीप जलाये/घोर विपद के बीच/चोट खा-खा के गाए/जीवन का सुचिहास,प्राण का प्राण है प्राणी/जीवन ज्योत अखंड,प्रेम की फुरती वाणी / एक प्रेमगीत जो आपके ह्रदय को अवश्य मुग्ध कर देगी
" जब पायल छनके छनन-छनन
उस वक्त चले आना
घुंघरू की धुन में घनन-घनन
उस वक्त चले आना
लो मैं आँखे बंद किए
अब गीत सजती हूँ
तेरी धुनकी में खोई
तुझको ही गाती हूँ.. "
" जब पायल छनके छनन-छनन
उस वक्त चले आना
घुंघरू की धुन में घनन-घनन
उस वक्त चले आना
लो मैं आँखे बंद किए
अब गीत सजती हूँ
तेरी धुनकी में खोई
तुझको ही गाती हूँ.. "
धीरज श्रीवास्तव जी :- धीरज जी के गीतों की जितनी तारीफ की जाए कम ही है इनके गीतों को जब आप पढने लगेंगे , तो पढ़ना छोड़ गुनगुनाने लगेंगे.
" मन का है विश्वास तुम्हीं से
मेरी जीवित आस तुम्हीं से
मुझपर हो उपकार सरीखी
अम्मा के व्यवहार सरीखी
दीप तुम्हीं हो दीवाली की
होली के त्यौहार सरीखी
सारा है मधुमास तुम्हीं से
मन का है विश्वास तुम्हीं से"
एक और गीत की कुछ पंक्तियों से रूबरू करवाती हूँ एक प्रेममय सुन्दर गीत ,
"लिख रहा पत्र मैं आज तुम्हें
जो शायद तुमको मिल जाए
इस मन के सूने आँगन में
इक पुष्प प्यार का खिल जाए "
" मन का है विश्वास तुम्हीं से
मेरी जीवित आस तुम्हीं से
मुझपर हो उपकार सरीखी
अम्मा के व्यवहार सरीखी
दीप तुम्हीं हो दीवाली की
होली के त्यौहार सरीखी
सारा है मधुमास तुम्हीं से
मन का है विश्वास तुम्हीं से"
एक और गीत की कुछ पंक्तियों से रूबरू करवाती हूँ एक प्रेममय सुन्दर गीत ,
"लिख रहा पत्र मैं आज तुम्हें
जो शायद तुमको मिल जाए
इस मन के सूने आँगन में
इक पुष्प प्यार का खिल जाए "
कृष्णनंदन मौर्य:- कृष्णनंदन मौर्य जी ने अपने गीतों में हर रंग हर भाव को सुन्दर सहज शब्दों में प्रस्तुत किया किया है
" संग तुम्हारे सपने बुनना
कितना मन को भाता है
जग से तुमको अपना कहना
कितना मन को भाता है "
दूषित राजनीती पर व्यंग करती रचना की कुछ पंक्तियाँ,
स्वार्थ - बुझे पासे/फिंकते कब से चौसर पर/नग्न-छुधित जनतंत्र/हारता हर अवसर पर.
स्वार्थ के चलते न्याय और अन्याय के बीच झुझती मनोव्यथा,
"अंधे न्यायलय को
सच का पांच गाँव भी नहीं गवारा
अपने-अपने स्वार्थ सगे सब
बात न्याय की कौन कहे अब
जिसकी हित गँठ गया जिधर भी
गरिमाये बह चली उसी ढब
बिछी जिरह में छल की चौसर
कटघर में विश्वास बिचारा..."
" संग तुम्हारे सपने बुनना
कितना मन को भाता है
जग से तुमको अपना कहना
कितना मन को भाता है "
दूषित राजनीती पर व्यंग करती रचना की कुछ पंक्तियाँ,
स्वार्थ - बुझे पासे/फिंकते कब से चौसर पर/नग्न-छुधित जनतंत्र/हारता हर अवसर पर.
स्वार्थ के चलते न्याय और अन्याय के बीच झुझती मनोव्यथा,
"अंधे न्यायलय को
सच का पांच गाँव भी नहीं गवारा
अपने-अपने स्वार्थ सगे सब
बात न्याय की कौन कहे अब
जिसकी हित गँठ गया जिधर भी
गरिमाये बह चली उसी ढब
बिछी जिरह में छल की चौसर
कटघर में विश्वास बिचारा..."
मीठी -सी तल्ख़िया -३ के सभी रचनाकारों, संपादक , प्रकाशक और साहित्य प्रोत्साहन संस्थान को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ....
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पुस्तक के प्रकाशन की बहुत बहुत बधाई ... शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिगंबर जी..
हटाएंCongratulations Reenaji
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मौर्य जी
हटाएंधन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
जवाब देंहटाएंआभार....
धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
जवाब देंहटाएंआभार....
सुन्दर समीक्षा काबिले तारिफ़ पुस्तक के प्रकाशन के लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं ::)))
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय भास्कर जी...
हटाएंबेहतरीन कविताये सकलित की है बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महेश कुशवंश जी
हटाएंबेहतरीन पुस्तक के प्रकाशन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाये और ढेर सारी बधाई स्वीकार करे ....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
धन्यवाद नवज्योति कुमार जी..
हटाएंCongratulations!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिभा वर्मा जी
हटाएंहार्दिक बधाई और अंनत शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हिमकर श्याम जी ..
हटाएं