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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

Aakhir kab ? आखिर कब ?



आखिर क्यों
आखिर कबतक
यूँ बेआबरू
होती रहेंगी बेटीयाँ ?
कभी उनके कपड़ों पर
कभी उनकी आज़ादी पर 
सवाल उठते थे ?
पर मासूम बच्चियाँ
दुधमुही बच्चियाँ अब उनपर 
क्या और किस 
बात का दोषारोपण होगा ?
उनपर किस बात की 
उँगली उठेगी अब ?
क्यों नहीं ऊँगली उठती
उन वैहशी नज़रों पर
उनकी कोढ़ी आत्मा पर
उनके मलिन मस्तिष्क पर
और कहाँ सोया है 
हमारा कानून
क्यों नहीं बनाता 
कोई मिसाल
की जुल्म के बारे में
सोचकर ही काँप उठे 
उन बेदर्दों की आत्मा
और उड़ सके ये बेटीयाँ
बिना किसी डर के
अपनी उड़ान.. 
आखिर डर के साए
में कबतक जीना होगा ?
बेटियों को और उनके
परिवारजनों को 
फिर कैसे कोई 
बेटी बचाएँ और उन्हें पढ़ायेगा ?
कब देंगे हम बेटियों को यह विश्वास 
की वो है अब सुरक्षित ?
कब दे पाएँगे हम उन्हें 
खुला आसमान ??
आखिर कब ???



रीना मौर्य मुस्कान 

गुरुवार, 15 मार्च 2018

Astitv अस्तित्व





मेरा अस्तित्व मेरे साथ है 
वो किसी के नाम का मोहताज नहीं 
पर हाँ 
जब मेरे नाम के साथ 
मेरे पिता का नाम होता है 
मुझे ख़ुशी होती है
उनका मेरे साथ होना
उनका अहसास 
उनका आभास ....
और जब नाम के साथ
जुड़ता है पति का नाम 
तब भी नहीं खोता 
मेरा अस्तित्व 
ये तो बंधन है प्यार का 
मेरा स्त्री होना ही
मेरा अस्तित्व है 
और इस अस्तित्व से 
मैंने रचा है कई रिश्ता 
मेरे नाम के साथ किसी का नाम
या किसी के नाम के साथ मेरा नाम
ये कोई वजह नहीं 
अस्तित्व के होने न होने में
या अस्तित्व के खोने में
ये नाम तो हमें रिश्ते देते है
पर अस्तित्व की असली पहचान 
हमारा कर्म है 
हमारा लक्ष्य है
और एक स्त्री होना ही 
अपने आप में पूर्ण 
अस्तित्व है... 

रीना मौर्य मुस्कान 
मुंबई महाराष्ट्र  


गुरुवार, 1 मार्च 2018

Rangbhari holi aai रंगभरी होली आई



रंग है उमंग है 
चारो ओर हुड़दंग है
मस्ती है प्यार है
रंगों की भरमार है
नीले, पिले, लाल, गुलाबी 
रंग सभी को भाते हैं
होली के त्यौहार मे
सबको गले लगाते हैं
गुजिया कचौरी की 
मीठी खुशबू
सबका मन ललचाते हैं 
भूल के सारे गिले और शिकवे 
हम हाथ से हाथ मिलाते हैं
प्रेम से होली मनाते हैं जी 
प्रेम से होली मनाते हैं |

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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

kaise ho sajan mere कैसे हो साजन मेरे






कैसे हो साजन मेरे 
ना कोई संदेशा आया है
झूठी हँसी से चेहरा सजा है
मन का पुष्प मुरझाया है 
आँखे भी ना साथ निभाए 
रह-रह आँसू झलक आया है 
पिया मिलन को तरसे जियरा 
ना कोई संदेशा आया है
बाट जोहती दिन और रैना 
थक कर हार गए मोरे नैना
थोड़ी सुध -बुध यहाँ की भी ले लो
माँ-बाबूजी का हालचाल ही पूछ लो
ऐसे भी क्या व्यस्त हो रहते 
तुम बिन हम क्या कुछ है सहते
बिन पिया के जीना है कितना मुश्किल
पड़ोसिन चुभाती है हर वक्त तानों के कील
घूँट-घूँट तानों के पी रही हूँ
माँ-बाबूजी और बच्चों के लिए जी रही हूँ
चलो छोडो सबकुछ अब
लौट यहाँ तुमको आना है 
बहुत हो गई ये रुसवाई 
आ जाओ एक बार पिया जी

अब दूर न तुमको जाना है  



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