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मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

Aakhir kab ? आखिर कब ?





आखिर कब ?
आखिर क्यों
आखिर कबतक
यूँ बेआबरू
होती रहेंगी बेटीयाँ
आखिर कबतक
हवाला देंगे हम
उनके पहनावे का
उनकी आजादी का
उनकी नासमझी
और समझदारी का
क्यों नहीं ऊँगली उठती
उन वैहशी नज़रों पर
उनके मलिन मस्तिष्क पर
और कहाँ सोया है
हमारा कानून
क्यों नहीं बनाता
कोई मिसाल
की जुल्म के बारे में
सोचकर ही काँप उठे
उन बेदर्दों की आत्मा
और उड़ सके ये बेटीयाँ
बिना किसी डर के
अपनी उड़ान..
आखिर डर के साए
में कबतक जीना होगा
बेटियों को ,
कब देंगे हम उन्हें यह विश्वास
की वो है अब सुरक्षित ?
कब दे पाएँगे हम उन्हें
खुला आसमान ??
आखिर कब ???
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