जब अकेली थी तो तुमने साथ दिया
जब उदास हुई तो तुमने हसाया....
जब उलझती दुनिया के सवालो में
तुम्हारे जवाब में खुद को निर्दोष पाया.....
मन के अंतर्द्वन्द्व की राहों में जब भी भटकती
तुम्हारी ही बातो ने मुझे राह दिखाया....
जब कभी लडखडाती मुझे संभालते वो हाथ
तुम्हारे ही तो थे.......
जब चाहा खुद को हवा में उछाल देना,
पानी में बहा देना,
माटी में मिला देना...
मुझे रोकते -टोकते वो बाहों के घेरे बनाये
तुम ही तो खड़े थे...
जब कभी "नहीं " को सोचती
तो उसे "हाँ " करने की जद्दोजहद में तुम ही तो थे ...
खता हो गई जो तुम्हारी कृपा दृष्टी को प्यार समझ बैठी
ध्यान नहीं रखा और रिश्तो में मिलावट कर बैठी ......
पाकर खोना अब यह मुमकीन नहीं
दूर होना अब यह मुमकीन नहीं
तुम्हारा साथ, वो मीठा अहसास
इनके बिना जीना अब ये मुमकीन नहीं ....
आसान नहीं तुम्हारे बिन जीना .
एक अहसान कर दो तुम साथ हो यही कह भर दो ........