सप्ताह के अंत में
होता था तुम्हारा आना …
वो एक शाम
जो गुजारा करते थे
तुम मेरे नाम ......
प्रेम कि उष्णता लिए
होंठो पर ढ़ेर सारी मुस्कान
बिसराकर सारे गम - और - ख़ुशी
हो जाती तुम्हारे प्रेम में
मै पगली गुमसुम गुमनाम.....
पिछले कई सप्ताह से
कर रही हूँ तुम्हारा इंतजार ....
कहाँ खो गए तुम .....
वो प्रेम कि ऊष्मा अब
इंतजार कि ठंड में बदल रही है ....
आँखों के बरसते आंसू अब
इंतजार कि हद बता रहें हैं ....
कहाँ हो तुम
कहाँ चले गए.....
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बुधवार, 11 दिसंबर 2013
Kaha Ho Tum कहाँ हो तुम
रविवार, 8 दिसंबर 2013
Mai haari par prem jeet gaya मैं हारी - पर मेरा प्रेम जीत गया
कोई जीत कर भी कभी -कभी प्रश्नचिन्ह सा रह जाता है,,,
पर प्रेम में प्रेम के लिए हारना कितना सुखद अनुभव देता है
अपने प्रेम को जीत कि ख़ुशी में आनंदित देख मेरा समर्पण कितना तृप्त हो जाता है ..
प्रेम कि ख़ुशी और मन कि तृप्ति के लिए ये हार मुझे तो हार सी नहीं लगती....
लो आज फिर हार गई मैं
" मैं हारी - पर मेरा प्रेम जीत गया "
हारकर भी जीत का सुखद अनुभव
आहा || मन कितना तृप्त हो गया
हाँ यही तो प्रेम है.....
ये मेरा अलग सा प्रेम अहसास है..
इसलिए तो जरा खास है........
सुखद हार जीत के बाद अब कुछ मीठा हो जाये....
:-)
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