"क्या है इंसान की पहचान
शारीरिक सुंदरता या मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुण "
आपको क्या लगता है ?? एक बार की बात बताती हूँ मै अपनी सहेलियों के साथ बस में सफ़र कर रही थी...सफ़र क्या वो लोग कॉलेज में दाखिले के लिए जा रहे थे मुझे भी मदद के लिए बुला लिया....तो मै भी उनके साथ चलने को तैयार हो गयी ..
तमाशा तब शुरू हुआ जब मै उनके साथ बस में खिड़कीवाले शीट पर बैठी.बस शुरू आने - जानेवाले सभी लोगों पर कमेंट करना चालू हो गया....
पहला शिकार ....
वो देख कितनी काली है एक तो काली है ऊपर से काला ड्रेस भी पहनी है...
दूसरा शिकार ....
वो चशमिश को देख...... मैंने उनकी तरफ देख कर हल्की सी मुस्कान दी....और मन में सोचा उधर नहीं....अपने बगल में देख....क्यूंकि उनके बगल में मै बैठी थी.....और मै भी चश्मा लगाती हूँ ....:-)
तीसरा शिकार....
एक मोटी सी लड़की ( अब इसके बारे में सुनिए....)
मोटी कितना खाती है इसके माँ -बाप इसको खिलाते -खिलाते ही कंगाल हो जाएंगे .....
अब देखिये कंगाल तो इस लड़की के माँ - बाप होंगे ना इन दोनों को क्या पड़ी है....
ये तो मैंने सिर्फ आपको उदहारण दिए है ,,,,,ना जाने कितने मासूम और बेगुनाह लोग मेरी सहेलियों की खिंचाई का शिकार बने है.
अब एक महत्वपूर्ण बात जो आपको सोच में डाल देगी और आपको हंसी भी आ जाएगी....
मेरी सहेलियों में एक खुद एक पैर से लकवे का शिकार थी .....
और दूसरी हड्डी का ढांचा .........
आ गयी ना हंसी :)))))
कितनी अजीब बात है ना ,,, जो खुद ही किसी तकलीफ से ग्रस्त है वो भी दूसरों की तकलीफ नहीं समझते .....
क्या शारीरिक बनावट ही इंसान की पहचान है.कोई शारीरिक रूपसे सुन्दर है तो क्या वो ही सुन्दर कहलायेगा,,,
मैंने उनसे कहा किसी को शारीरिक रूप से आंकना सही नहीं है ,कोई काला है या काली है..मोटा या ,मोटी हो चशमिश हो...इससे इंसान की पहचान करना सही नहीं है उनका मजाक उड़ाना सही नहीं है ...इंसान की पहचान उसके मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुणों से करनी चाहिए ....
कॉलेज का रास्ता करीब एक घंटे के आसपास था...अगर ट्रेफिक हो तो और जादा समय लग जाता है..
इसलिए इस विषय पर मेरी भाषणबाजी चालू थी...
तो हड्डी के ढांचे ने मेरा हाथ पकड़कर कहा - "बस कर ना यार तू भी क्या पका रही है "
उसकी हां में हां मिलाते हुए दूसरी ने कह दिया तू तो एकदम बड़े -बुड़ो की तरह बात कर रही है......
तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा की बात पकाने की या बड़े - बुड़ोवाली नहीं है .....
हमें किसी के शारीरिक रूप का कभी मजाक नहीं करना चाहिए....
मै आगे बोलने जा ही रही थी की --एक बार उनके चहरे को गौर से देखा.....तो मुझे महसूस हुआ की शायद ये दोनों मेरी बातों से उब गए है.....( और हो भी क्यों ना -- बेचारे ताली बजा-बजाकर मजा कर रहे थे औए मैंने उन्हें गंभीर कर दिया...)
इसलिए मै चुप हो गयी क्यूंकि ,,,'एक कहावत है....
" भैस के आगे बिन.........
बस अगले स्टॉप पर रुकी तो एक मोटा सा बच्चा बस में चढ़ा.. स्कूल जा रहा था....
ये फिर शुरू हो गई ......" अभी से इतना मोटा है बड़ा होगा तो कितना मोटा हो जायेगा..बस में घुस भी नहीं पाएगा "..दूसरी कहती है...." इसको तो टेम्पो से जाना पड़ेगा .....
बेचारे बच्चे को भी नहीं बक्शा इन दोनों ने ....
अब मेरी बरदास्त से बाहर था....मै चुपचाप बस से उतरने के लिए आगे जाकर खड़ी हो गई.... तभी उन्होंने मुझे टोका .. अभी कॉलेज आने को टाइम है अभी कहा जा रही हो...
गुस्सा इतना आ रहा था की इन्हें क्या कहूँ ...
उस वक्त कबीर जी का एक दोहा दिमाग में आ गया...
ये दोहा उनकी हरकतों पर कितना फिट बैठता है ये मै नहीं जानती थी.. बस कुछ कहना ही था तो कह दिया....
"बुरा जो देखण मैं चला बुरा न मिलया कोए
जो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा न कोए "
हा अ अ .... थोड़ी मन को शांति मीली.....जो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा न कोए "
बस स्टॉप पर रुकी और मै बस से उतर गई...:-)
अंत में जो आपने किया ...बस वो ही बेहतर है ......
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार ...अच्छे संस्कारों की देन होते हैं!
शुभकामनाएँ!
बेहद खूबसूरती से आपने सच्चाई बयान की है...
जवाब देंहटाएंसंसार में आलोचना से कोई नहीं बच सकता.....सिर्फ एक ही बचता है जो अभी संसार में नहीं आया.....जैसे ही आएगा उसकी भी आलोचना शुरू हो जाएगी.....देखो तो नाक तो जैसे है ही नहीं, वज़न कितना कम है, घर पर तो किसी पर गया ही नहीं, माँ कितनी गोरी है बाप भी ठीक है फिर बच्चा इतना काला क्यों है या आँखे कितनी छोटी है :-))
जवाब देंहटाएंकबीर के दोहे में सुधार करें-
जो आपन भीतर देखा तो मुझसे बुरा न कोय
ये बात आपकी ठीक है की आज के ज़माने में भली बात कहने वालों को पुराने ज़माने का मन लिया जाता है ।
रीना जी हमारे दोस्तों का भी यही हाल है।उनकी इन आदतों पर कभी गुस्सा आता है तो कभी हंसी आती है।ये सब बातें जो आपने बताईं ,ये इन्सान की मानसिकता का चित्रण करती हैं।इसी से पता चल जाता है की उनका ज़हन कैसा है।
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
उपरोक्त सारे वाकया मेरे साथ गुजर चुका है...पर जरा भिन्न भी है...और लिखने जैसा भी नहीं है इस जगह..क्यों कि ब्लागों में सफाई यंत्र नहीं न लगा है...
जवाब देंहटाएंसादर
सच्चाई बया करती सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसही फ़रमाया आपने...आलोचना की जगह समालोचना होती तो ठीक था...
जवाब देंहटाएंमैंने कबीरदास जी का ये दोहा कुछ इस तरह पढ़ा था...हो सकता है जो आपने लिखा है वो सही हो...
बुरा जो देखन मैं गया बुरा न मिलिया कोय
जो तन झाँका आपना मुझसा बुरा न कोय...!
मगर मसला इसका नहीं है जो बात आपने बयां की है वो हर रोज के किस्से है...बस कुछ किस्से अनकहे रहे जाते है और कहानियां नहीं बन पाती...!
आपकी प्रस्तुति सराहनीय है...
बढ़िया चित्रण मन का | बुरे काम में दूसरों का साथ न देना अपने में के ऊपर कंट्रोल को प्रदर्शित करता है | इससे पता चलता है कि आप दूसरों के में कैसे भाव पैदा होते है, आप जानती हैं |
जवाब देंहटाएं"टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
मन व्यथित होता है कई बार ..
जवाब देंहटाएंमन की व्यथा को आपने उजागर किया
साधुवाद
Imraan ji, Harish ji...
जवाब देंहटाएंschool me ye dohe padhe the...
par ab thik se yaad nahi hai...
is links se dohe liye hai http://www.boloji.com/index.cfm?md=Content&sd=DohaDetails&DohaID=2
apka swagat hai...
aapne bahut accha lekha likha hai , ye sabhi ke sath hota hai , kya kare purusha kee mansikta hi kuch is tarha se hai .. bahut dukh hota hai , par duniya me bahut se acche insaan bhi hai .. bas isis se santosh kariye .
जवाब देंहटाएंकबीर जी के दोहे का पालन यदि हम कर लें तो सब बेहतर हो जाए।
जवाब देंहटाएंबढिया चिंतन करने योग्य पोस्ट।
ऐसे ही लिखती रहें।
शुभकामनाएं.....
शरीर सिर्फ आकर्षित करता है। यह इंसान की कमजोरी है कि वो first impression (जो कपड़ों या शरीर से झलकता है ) को ही last Impression ,मान कर किसी के भी बारे मे अपनी धारणा बना लेता है तो वास्तविक सुंदरता जो मन मे होती है उसे कैसे महसूस कर सकता है?
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय लिखा है आपने।
सादर
इंसान की पहचान मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुण से होती न कि सुंदरता से,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर :-)
जवाब देंहटाएंखुबसूरत सच सदा आइना सा लगता है .
जवाब देंहटाएंहंसी तो आई ही, मगर बहुत अच्छा सन्देश दे गया आपका ये आलेख..
जवाब देंहटाएंसादर
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंउम्र की चाल है मासूमियत की बातें हैं ,इन दिनों सीरत (आदमी के गुण )से आगे सूरत है ..बढ़िया प्रस्तुति है .... .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएं.
ram ram bhai
रविवार, 27 मई 2012
ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह को सूली पर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भी -
चालीस साल बाद उसे इल्म हुआ वह औरत है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
मन में यदि सुंदरता है तो स्वभाव और गुण भी अच्छे हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कहानी।
प्रभावशाली और सशक्त प्रस्तुति । आभार ।
जवाब देंहटाएंVery nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
बहुत सहजता से आपने ये वाकया लिखा ख़ुशी हुई पढ़कर क्यूंकि ऐसी मानसिकता की आलोचना वही व्यक्ति कर सकता है जिसका दिल साफ़ और सुन्दर हो बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
जवाब देंहटाएंbahut hi achchha sandesh aapne diya hai is prastuti ke madhyam se. sharirik banavat jo apne hathon men nahin uska majk udana uchit nahi..... sunder prastuti.
जवाब देंहटाएं"बुरा जो देखण मैं चला बुरा न मिलया कोए
जवाब देंहटाएंजो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा न कोए "
हा अ अ .... थोड़ी मन को शांति मीली.....
बस स्टॉप पर रुकी और मै बस से उतर गई...:-)
व्यक्तित्व के साथ आतंरिक व्यक्तित्व का मूल्याङ्कन होता है तो क्यों न उसे इश्वर ने जैसा दिया है . उसे सार्थक बना कर रखें
न उसे भी भुत प्रेत का शकल देकर खुद हंसी के पात्र बन जाएँ
सौ फ़ीसदी सच बात कही है आपने रीना जी!!
जवाब देंहटाएंकॉलेज में ऐसे वाकये मेरे साथ होते थे, और जब मैं अपने साथियों पर बिगड़ जाता था तो वो मेरे पीछे कहते थे "बड़ा ज्ञानी बनता है"..
खैर, टिप्पणियों में देखा कबीर के दोहे के बारे में..आपने ब्लॉग पर एकदम ठीक दोहा डाला है
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय
:)
bilkul sahi bat kahi aapane
जवाब देंहटाएंkoi dikhta kaisa hain vo sirf uska upari aawaran hain
uska man accha hona chahiye
jaise hamare vichar honge vaise hi hum bante jayenge
इस तरह की बातें शायद वही लोग करते हैं जो खुद हीन भावना के शिकार होते हैं और अपनी कुंठा दबाने के लिए दूसरों पर छींटाकशी करते हैं. मुझे तो दया हि आती है ऐसे लोगों पर.
जवाब देंहटाएंऐसे वाक्यात कोलेज के दिनों में होते रहते हैं ... हमारे समय भी होते थे पर मुझे लगा की शायद आज कुछ कम हो गए हों क्योंकि समाज में खुला पण ज्यादा आ गया है ... पर अफ़सोस ऐसे मसलों में बदलाव कितना धीरे आता है ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.....आभार
जवाब देंहटाएंदूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में जिला बाडमेर राजस्थान में बना हुआ है!.....
पढ़े इस लिक पर
Kash sabhi aap jaisi soch rakhte..
जवाब देंहटाएं..Bahut hi khubsurat post..
बहुत सार्थक पोस्ट.... आत्ममंथन व आत्म चिन्तन के लिए प्रेरित करती.
जवाब देंहटाएंये दोष आपकी सहेलियों का नहीं है ये मानसिकता का है वे अपनी हीन भावनाओं को छिपाने का प्रयास कर रही है ये एक मनोवैज्ञानिक सत्य है ....
जवाब देंहटाएं.बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsabse sunder mann ka saaf and sacha insaan hota hai..:)
जवाब देंहटाएंकुछ भी कह लें सुन ले.. यह तो चलेगा ही..
जवाब देंहटाएंऔर दोस्तों के बीच कभी कभी इसी विषय पर ज्यादा ठिठोली होती है.. पर हमेशा ऐसा करना भी अच्छी बात नहीं है..
अंत में वही हमें अच्छे लगते हैं जो मन से सुन्दर हो, न कि तन से..
"बुरा जो देखण मैं चला बुरा न मिलया कोए
जवाब देंहटाएंजो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा न कोए "
हा अ अ .... थोड़ी मन को शांति मीली.....
बस स्टॉप पर रुकी और मै बस से उतर गई...:-)
बिल्कुल सही किया आपने .. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ये भी समाज का हिस्सा है रीना जी....वो भी बुरा हिस्सा...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच बयाँ करती रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ..
जवाब देंहटाएंऐसे ही हम भी कॉलेज में करते थे......यह एक आम घटना है... जो हमे कुछ पल की हंसी प्रदान करते है........
जवाब देंहटाएंकॉलेज के बाद यह सभी चीज़ खत्म हो जाती है, क्योंकि कभी दोस्त मिलकर इकठ्ठे नहीं बैठ पाते, सभी अपने काम-धंधो में व्यस्त हो जाते है..........
इस लिए यह कोई गंभीर विषय नहीं है........हां जिसकी आलोचना हम कर रहे होते है, क्या उसको पता भी चल पाता है की हम उसकी आलोचना कर रहे है?
शायद उसे तो कुछ ज्ञान भी नहीं होता की उसकी आलोचना की जा रही है?
यह सिर्फ दोस्तों के इकट्ठा होने पर होता है.....अकेले में नहीं .......सिर्फ जिंदगी के कुछ क्षणों में होता है.....सारी जिंदगी नहीं........
क्योंकि यह क्षण फिर दुबारा नहीं आते है.......जिसकी आलोचना हो रही होती है उसे तो पता भी नहीं चलता, तो...
इंसान की पहचान उसके मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुणों से करनी चाहिए ..
जवाब देंहटाएंसच बयाँ करती रचना
मन की सुंदरता ही तो सच्ची सुंदरता हैं |
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