मुझे पाना चाहती थी वो
पर मेरी हा का इंतजार करती थी
पर अधिक इंतजार भी कर ना पाई वो
मुझसे बेपनाह प्यार जो करती थी
चाहत कि हद पार कर
शर्मो - हया को छोडकर
मेरी बाहो में समा गई
बहते अश्रू से मेरे ह्रदय को भीगा गई
सांसो में सिसकीया
आंखो में अश्क
कापते होंठ उसके
मन में कश्मकश
रुवासा चेहरा
आंखो में सवाल
क्यू करवा रहा था ,,, उससे मै इंतजार ?
चाहती थी वो मुझसे इसका जवाब ......
क्या देता जवाब मैं..
मैं तो खुद हि जिंदगी का सवाल था ...
क्युंकी मैं चंद लम्हो का हि मेहमान था ...
just a poem
read it feel it .....