अपनें इशारों से हवा में
कितने ही तस्वीर उकेरती ......
अपने हाथों से अदृश्य
कल्पना को दृश्य देती .....
अपनी आँखों से ना जाने
कितने ही भाव उकेरती ......
अ आ अं अः स्वर से
अपनी बातों को कहती .....
सिमित शब्दों में वो
अपनी सारी बातें कह जाती .....
अभिव्यक्ति के एक माध्यम से
वंचित होने के साथ ही ,,,,,
उसने नए आयाम दिए है
अपनी भावनाओं को कहने को ......
वो मूक आवाज थोड़ा - थोड़ा बोलती थी
हमेशा से अपने इशारों में ,,,
अपनें हाथों से
अपनी आँखों से
अपने सिमित स्वरों से
पर आज वो बहुत खुश है
क्यूंकि उसने बोलना सीख लिया है
अपनी कलम से....
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