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शनिवार, 12 जनवरी 2013

Ek jashn aisa bhi एक जश्न ऐसा भी ..



आज मैंने देखा सड़क पर 

एक नन्हा सांवला बच्चा 

प्यारा सा,, खाने की थाली में कुछ ढूंढ़ता हुआ

उस थाली में था भी तो ढ़ेर सारा पकवान .....

वहीँ पास उसकी बहन थी
जो एक सुन्दर से दिए के
साथ खेल रही थी .....
दिए की रोशनी से उसकी आँखे चमचमा रहीं थी
वो छोटी सी झोपड़ी भी दिए के
रोशनी से रोशन हो गयी थी...
वरना दूर सड़क पर की स्ट्रीट लाइट 
का सहारा तो था ही...
बगल में बैठी उसकी माँ 
अपने बच्चों की ख़ुशी से
फूली नहीं समां रही थी...
थोड़ी ही दूर अगले मोड़ पर एक दावत थी..
सेठ जी के  पोते का मुंडन था...
शायद वहां के सेठ-या सेठानी 
इनपर मेहरबान हुए होंगे
तभी तो आज यहाँ भी जश्न का माहौल है...
शायद जब महलों में दिया जलता है
तभी होती है इन झोपड़ियों में रोशनी ....


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