वो जन्म से वैश्या नहीं
ना किया है उसने कोई पाप
घरवालों के भविष्य की खातिर
झेल रही संताप
बाबा उसका एकदम शराबी
माँ के ह्रदय में है खराबी
छोटे छोटे भाई - बहनों की
खातिर उसने घुँघरी पहने
अपनी अस्मत हर रात गंवाती
फिर भी दिनभर मुस्काती
उस बेटी के हिम्मत के क्या कहने
दिन में माँ - बाबा की बिटिया है
भाई- बहनों की दीदी
रात में बन जाती है वो
लाली और सुरीली
जीवन उसका जैसे अभिशाप
नहीं बचा पाई वो बिटिया
खुद को करने से ये पाप
फिर भी आस है उसके मन में
की एकदिन उसके भाई- बहन
समझेंगे उसके त्याग,पीड़ा और जज्बात
और दिलाएंगे उसको
इस दलदल से निजात
जीती है लेकर बस यही आस
और बेचती है अपना जिस्म हर रात।
लाज़वाब सृजन …
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब, मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका :-)
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत और मार्मिक रचना....
जवाब देंहटाएंआप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)
...बहुत सुन्दर प्रस्तुति के साथ शाश्वत सत्य
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना..
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