बात हो गई अब ये पुरानी
जब दादी सुनाती थी कहानी
दादा के संग बागों में खेलना
रोज सुबह शाम सैर पर जाना
भरा पूरा परिवार था प्यारा
दादा दादी थे घर का सहारा
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
दादी की कहानी ग़ुम है
दादा जी अब कमरे में बंद है
गुमसुम हो गई उनकी जवानी
बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी
बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते
रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है
एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
आज के समय का बहुत सटीक शब्द चित्र...दिल को छूती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-10-2015) को "तलाश शून्य की" (चर्चा अंक-2140) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
समाज की कड़वी सच्चाई।
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