कभी इन्हीं जगहों पर हुआ करते थे
बड़े- बड़े जड़ -लताओंवाले वृक्ष
सुगन्धित फूलों के पौधे
हरियाली फैलाती दूर तक बिछी घास
तरह -तरह के पंछी और उनकी मीठी आवाज.....
अपने अन्दर कई खूबसूरती और
रहस्य को छुपाये ये जंगल .......
और इसके पास छोटे छोटे
घरों में रहनेवाले सामान्य लोग
जो सारा दिन काम करने के बाद
इन वृक्षों के निचे बैठ कुछ पल को
ठंडी साँस लेते थे.......
परन्तु बदलते परिवेश और आधुनिकता ने चारों ओर
कंकरीट के जंगल बना दिए है
अब तो चारों ओर केवल कंकरीट
की इमारतों का ही कब्ज़ा है ......
इन इमारतों की खूबसूरती में बिकते लोग
कोई बनाने की चाहत में बिक रहा है
मानवीयता बेच के संवेदनहीन हो रहा है ......
तो कोई खरीदने की चाह में
खुद को बेंच रहा है.........
और इस खूबसूरती में रहनेवालों की ठाठ ही अलग है
बंद खिड़की और दरवाजों के अन्दर चाहे जो है......
पर बहार निकलते ही ये बन जाते है
बड़े साहब और मेम साहेब
और पहन लेते है आधुनिकता के
काले कोट बड़े साहेब जी
और डिजाइनर साड़ी में मेम साहेब जी.....
एकदम खानदानी .....
बहुत ही सुन्दर है ये कंकरीट के जंगल....
और इसके लोग....
maarmik रचना |आधुनिक परिवेश में सटीक |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (02-09-2013) को प्रभु से गुज़ारिश : चर्चामंच 1356 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद :-)
हटाएंहैं सबके सब आशाराम।
जवाब देंहटाएंअब उसी में जान फुका जाय। ……. सुन्दर
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंबंद खिड़की और दरवाजों के अन्दर चाहे जो है......
पर बहार निकलते ही ये बन जाते है
बड़े साहब और मेम साहेब
और पहन लेते है आधुनिकता के
काले कोट बड़े साहेब जी
और डिजाइनर साड़ी में मेम साहेब जी.....
एकदम खानदानी .....
बहुत ही सुन्दर है ये कंकरीट के जंगल....
और इसके लोग..
बढते कंक्रीट के जंगल ही आज के कथित विकास के धोतक हैं !!
जवाब देंहटाएंकंकरीट के जंगल,बहुत सुन्दर-सटीक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशहरीकरण और शहर के लोगों पर सटीक रचना
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post नसीहत
सुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :-)
जवाब देंहटाएंइन जंगलों में रहने वालों की आत्मा कितनी छोटी होती है ये कोई नहीं जानता ...
जवाब देंहटाएंइनका विस्तार बस चारदीवारी तक रहता है ...
बहुत बढ़िया सटीक प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : फूल बिछा न सको
धन्यवाद :-)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना.......
जवाब देंहटाएंएकदम खानदानी .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर है ये कंकरीट के जंगल....
और इसके लोग........सुन्दर चित्रण शहरीकरण पर सटीक रचना !!
बहुत ही सुंदर सटीक प्रस्तुति,,,.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअब तो चारों ओर केवल कंकरीट
जवाब देंहटाएंकी इमारतों का ही कब्ज़ा है ......
सच है
आधुनिक परिवेश का सटीक चित्रण …. सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत तीखा कटाक्ष किया है इस कविता के ज़रिये आपने।।
जवाब देंहटाएंआज का कटु यथार्थ...
जवाब देंहटाएंकड़वा सच!
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