मेरा अस्तित्व मेरे साथ है
वो किसी के नाम का मोहताज नहीं
पर हाँ
जब मेरे नाम के साथ
मेरे पिता का नाम होता है
मुझे ख़ुशी होती है
उनका मेरे साथ होना
उनका अहसास
उनका आभास ....
और जब नाम के साथ
जुड़ता है पति का नाम
तब भी नहीं खोता
मेरा अस्तित्व
ये तो बंधन है प्यार का
मेरा स्त्री होना ही
मेरा अस्तित्व है
और इस अस्तित्व से
मैंने रचा है कई रिश्ता
मेरे नाम के साथ किसी का नाम
या किसी के नाम के साथ मेरा नाम
ये कोई वजह नहीं
अस्तित्व के होने न होने में
या अस्तित्व के खोने में
ये नाम तो हमें रिश्ते देते है
पर अस्तित्व की असली पहचान
हमारा कर्म है
हमारा लक्ष्य है
और एक स्त्री होना ही
अपने आप में पूर्ण
अस्तित्व है...
रीना मौर्य मुस्कान
मुंबई महाराष्ट्र
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर ..
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-03-2017) को "छोटी लाइन से बड़ी लाइन तक" (चर्चा अंक-2912) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर ...
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
हार्दिक धन्यवाद
हटाएंप्यारी कविता..स्त्री होना ख़ुद में सम्पूर्णता है
जवाब देंहटाएंमेरा अस्तित्व मेरे साथ है
जवाब देंहटाएंवो किसी के नाम का मोहताज नहीं
बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं. शायद आज समाज इनके उत्तर देने को तैयार न हो, लेकिन पुरुष प्रधान समाज को एक न एक दिन अपनी सोच बदलनी होगी. नारी को केवल नारी बन कर क्यों नहीं जीने दिया जाता ? सामाजिक नियम उसी पर क्यों ज़बरदस्ती थोपे जाते हैं? बहुत ही सार्थक प्रश्न और बहुत मर्मस्पर्शी कविता. बहुत सटीक और सार्थक. आभार
शानदार
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