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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

ful gulab ka फूल गुलाब का



महक उठता था मेरा अंग
जब तू था मेरे संग
वो गुलाबी गुलाब के फूल
चुभे थे तुम्हारे हाँथों में 
उसके शूल
सुर्ख लाल रंग लहू से अपने
भर दी थी तुमने माँग मेरी
और चूम लिया था मैंने
अपने लाल होंठों से 
तुम्हारा माथा
तिलक के पर्याय मे
और इस तरह कर लिया था
हमने ब्याह 
गुलाब को साक्षी मानकर
और आज वही गुलाब
अपने फीके पड़े रंगों में
सकुचाया - सा दबा पड़ा है
किताबों के बिच
झर जाने को बेताब
क्यूँकी वह नहीं बन सकता
निशानी हमारे बिछोह की
उसे नामंजूर है 
हमारा एक - दूजे से बिछड़ना
और तुम्हें ?? 

2 टिप्‍पणियां:

  1. समय एक सा कहाँ रहता है
    समय-समय की बात है

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

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