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शनिवार, 23 जुलाई 2011

Sham ki tanhayi शाम की तन्हाई

तन्हाई भरी शाम थी वो 
और यादो में थी किसी की याद
उनके आने का इंतजार
करते थे हम भी उनसे बेपनाह प्यार,
उनके दिल में भी थे कुछ जजबात,
 मौसम ने ली अंगडाई ,
और तन्हाई भरी ये शाम आई.
एक रोज बैठा करते थे हम,
आँखों में डाले आँखे ,
आज नजरे चुराके बैठे है वे  कही दूर जाके,
उनके इंतजार में है ये दिल बेक़रार,
क्या उन्हें भी है हमारा इंतजार,
ये शाम की तन्हाई कैसी - कैसी उलझने लायी,
जिसने किया था वादा साथ देने का,
आज उसने क्यों ये दूरिया लायी,
ये शाम की तन्हाई.


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15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया।

    --------
    कल 13/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही गहनाभिब्यक्ति के साथ लिखी शानदार रचना बधाई आपको /





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    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर लिखतीं हैं आप ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझे ये कविता बहुत पसंद आई रीना जी
    आपने भावो को बहुत अच्छे शब्द दिए है .
    बधाई जी
    विजय

    जवाब देंहटाएं

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