वो जन्म से वैश्या नहीं
ना किया है उसने कोई पाप
घरवालों के भविष्य की खातिर
झेल रही संताप
बाबा उसका एकदम शराबी
माँ के ह्रदय में है खराबी
छोटे छोटे भाई - बहनों की
खातिर उसने घुँघरी पहने
अपनी अस्मत हर रात गंवाती
फिर भी दिनभर मुस्काती
उस बेटी के हिम्मत के क्या कहने
दिन में माँ - बाबा की बिटिया है
भाई- बहनों की दीदी
रात में बन जाती है वो
लाली और सुरीली
जीवन उसका जैसे अभिशाप
नहीं बचा पाई वो बिटिया
खुद को करने से ये पाप
फिर भी आस है उसके मन में
की एकदिन उसके भाई- बहन
समझेंगे उसके त्याग,पीड़ा और जज्बात
और दिलाएंगे उसको
इस दलदल से निजात
जीती है लेकर बस यही आस
और बेचती है अपना जिस्म हर रात।
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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015
शनिवार, 24 अक्तूबर 2015
sanyukt pariwar संयुक्त परिवार
बात हो गई अब ये पुरानी
जब दादी सुनाती थी कहानी
दादा के संग बागों में खेलना
रोज सुबह शाम सैर पर जाना
भरा पूरा परिवार था प्यारा
दादा दादी थे घर का सहारा
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
दादी की कहानी ग़ुम है
दादा जी अब कमरे में बंद है
गुमसुम हो गई उनकी जवानी
बुढ़ापे ने छिनी उनकी रवानी
बच्चे अब नहीं उनको चाहते
बोझ जैसा अब उन्हें मानते
रोज गरियाते झिझकाते है
बूढ़े माँ पिता को सताते है
एक समय की बात ख़त्म हुई
दूजे समय ने की मनमानी।
बात हो गई अब ये पुरानी
संयुक्त परिवार की ख़त्म कहानी
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