आजा बरखा तेरी
राह तकू मैं कब से
झुमने को, नाचने को, गाने को
मन तरस रहा है कब से.....
सुनी जो पुकार है तुने
मन आभारी है तेरा बदरीया
भीगी - भीगी, रिमझिम - रिमझिम फुहार में
पिया संग नाचे ये बांवरिया ....
सावन के झूले डाल दिए है
हिचकोले खाने लगा है मन
हवा संग बहने को,
प्रेम संग बहकने को,
बजने लगा है मन - तरंग ....
तेरी मेरी बातें
वो मीठी यादे
कहाँ ले आई है कहाँ ले जाएँगी
ये प्यार की प्यारी मुलाकाते....
बरसात वो भीगी सी रात
तेरा मेरा मिलना
फूलों सा खिलना
रिमझिम फुहार
चूड़ियों की झंकार
भीगा उनका मन
लाज से झुक गये
मेरे दो नयन ......
सावनी फुहार
हिना की खुशबू
महक उठा है मन
महक उठा है घर - आँगन
इंतजार है अब
कब खिलेगा मेरी
हथेली पर रंग....
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बुधवार, 11 जुलाई 2012
Barsat Ke Rang Dekho Mere Sang बरसात के रंग देखो मेरे संग ..
शनिवार, 7 जुलाई 2012
शुक्रवार, 29 जून 2012
Shayad Mai Chhal Rahi Hu Khud Ko Aur Tumhe Bhi शायद मैं छल रही हूँ खुद को और तुम्हें भी
शायद मैं छल रही हूँ खुद को और तुम्हें भी ....
क्यूँ बेचैन है दिल तुम्हारे लिए
तुम जो बहुत दूर हो मुझसे...
शायद || तुम तक पहुँचना भी
मेरे लिए मुमकिन नहीं
फिर क्यूँ आहत होता है दिल
तुम्हारे दूर जाने की बातों से
तुम कब थे ही मेरे पास
या तुम्हारा अहसास ही है मेरे लिए खास...
जो हमारे बीच के फासलों को कम करता है
और हमें जोड़े रखता है एक दूजे से...
पर ये जुड़ाव भी कैसा....
जो कभी हकीकत नहीं बन सकता...
मै जानती हूँ और मानती भी हूँ
पर फिर भी कहती रहती हूँ
की,, मै तुमसे प्यार करती हूँ
और शायद..मेरा यही प्यार
तुम्हारे लिए बंदिश होता जा रहा है...
जो तुम्हें आगे बढ़ने से रोकता है ...
ना तुम मेरे हो सकते हो
ना मै तुम्हारी
शायद मैं छल रही हूँ खुद को और तुम्हें भी ....
मुझे जाना कहीं और है
मेरे हाथों में किसी और का हाथ होगा एकदिन
पर जिंदगीभर मैं तुम्हें साथ पाना चाहती हूँ
ये कैसे मुमकिन होगा तुम्हारे लिए...
मुझे कहीं और देखना
पर मेरा ये स्वार्थी प्यार
हर मोड़ पर तुम्हें साथ पाना चाहता है...
शायद मैं छल रही हूँ खुद को और तुम्हें भी ....
प्यार जो फासलों में जीता है...
टीस है ये दर्द की
आह है ये जुदाई की....
गुरुवार, 21 जून 2012
Mujhe Kavita Bana Diya Usane मुझे कविता बना दीया उसने
कैसा बाँवरा था वो कविताओं का इतना शौक रखता था नाम रीना है मेरा कविता बना दिया उसने... प्रेम बसाये आँखों में जब भी देखती हूँ उसे समझाना कुछ और चाहती हूँ पर देखो बाँवरे ने क्या समझा छोटी सी आँखों में मेरे झील और समुंदर भरकर कविता बना दिया उसने..... जब भी उससे कुछ कहती हूँ सुनता नहीं वो शब्द मेरे खुलते -बंद होते ..... होंठो को देखा गुलाब की पंखुड़ियों का नाम देकर कविता बना दिया उसने.... सोचा चूड़ियाँ झनकाऊं बिंदिया चमकाऊं थोड़ा उनका मन बहकाऊं बाँवरे ने मुझको ही बहका दिया चूड़ियों की झंकार सूनी सुना ना मेरे दिल की धड़कन बिंदिया को चंदा -सूरज की उपमा दे दी और मुझको कविता बना दिया उसने.. उस नादान की नादानी से उदास जब हो जाती हूँ बंधे केशुवों को खोलकर उदास चेहरा जब छुपाती हूँ काली घटा ,बादल , रेशम जाने क्या - क्या नाम देकर मेरे केशुवों पर कविता बना दिया उसने.. मुझे कविता बना दिया उसने... मुझे कविता बना दिया उसने... |
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