ईश्वर की सुन्दर कल्पना से मिलना चाहती हू मै
मुझे ना बांधो तुम सामाजिक डोर से
मुझे ना बांधो तुम रिश्तों की डोर से
आजाद कर दो मुझे, मै देखना चाहती हू
इस दुनिया को,,,,
इस भीगी धरती को, उस नीले आसमान को
मै जीना चाहती हू,अपनी रफ़्तार से
इस कल्पना की उड़ान में
आजाद कर दो मुझे उड़ना चाहती हु मै
ईश्वर की सुन्दर कल्पना से मिलना चाहती हू मै
आजाद कर दो मुझे मै देखना चाहती हु इस दुनिया के रंग ,,,
कहीं प्यार में झुपी नफरत ,
तो कहीं सच में झुपा झूंठ ,
मै देखना चाहती हु उन लोगो को ,
मै जानना चाहती हु, उस हर एक चेहरे को
आजाद कर दो मुझे मै देखना चाहती हु इस दुनिया के रंग ,,,
कहीं प्यार में झुपी नफरत ,
तो कहीं सच में झुपा झूंठ ,
मै देखना चाहती हु उन लोगो को ,
मै जानना चाहती हु, उस हर एक चेहरे को
जो इस दुनिया में रहते है
जिनके मन में हर पल नयी व्यथाए जन्म लेती है,
क्या सचमुच इश्वर ने ये दुनिया बसाई
या मनुष्य ने स्वयं ऐसी राह अपनाई
जहा केवल दुःख ,हिंसा ,गरीबी, घृणा ,और लड़े आपस में भाई - भाई
आजाद कर दो मुझे , मै बदलना चाहती हु,
इस श्रुष्टि को , इस श्रुष्टि में बसे इंसानों को....
आजाद कर दो मुझे , मै बदलना चाहती हु,
इस श्रुष्टि को इश्वर की उस सुन्दर कल्पना में,,,,
जहा सुख , अहिंसा ,प्रेम ,और सम्मान हो,
जहा मनुष्य मनुष्यता के लिए मरे
ना उंच - नीच का भेद हो ,,,
ना नफ़रत की दिवार हो,,,
आजाद कर दो मुझे उड़ना चाहती हु मै
इश्वर की सुन्दर कल्पना को साकार करना चाहती हु मै
sach me is duniya ko badalne ki jarurat hai
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi kahaa hai apne
बहुत सुन्दर कविता .. बहुत ही सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव छुपे हैं इस कविता में, way to go Reena ji, आशा है ऐसी ही कवितायेँ मिलती रहेंगी भविष्य में.
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