वो औरत जब निकलती है घर से
दर्जनभर सुहाग की निशानिया पहनकर
सिंदूरी आभा बिखेरती उसकी माँग
गले में लटकाये तोलाभर मंगलसूत्र
हाथों में पिया नाम की मेहंदी
और दर्जन - दो- दर्जनभर चूड़ियाँ
पैरों की उंगलियो में हीरे जड़ित चाँदी के बिछुए
गहरे गुलाबी रंग के आलते से रंगे उसके पांव
खुद को पल्लू में छुपाती,मुस्काती
बड़ी ही खुशमिजाज लग रही थी
पर कोई न देख पाया उसकी
एक और सुहाग निशानी
जिसे उसने छुपा रखा है
इनसभी सुहाग निशानियों के बीच
कजरारी अँखियों में छुपी रोती हुयी आँखे
वो घाव जो उसकी चूड़ियों के बीच से कराह रहे थे
वो घाव जो उसके सुहाग की बर्बरता को
चीख -चीख कर सुनाने की भरसक कोशिश कर रहे थे...
पर इन सुहाग निशानियों को छिपा दिया है
उसने अपनी चमचमाती सुहाग निशानियों के बीच....
वो औरत ....
उस औरत ने....
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bahut sari aurton ki kahani bayan ki aapne is marmik rachna me ....!
जवाब देंहटाएंयही तो दुर्भाग्य है!
जवाब देंहटाएंdhanywad rajendra ji.....
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी.....
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : इतिहास के बिखरे पन्ने : आंसुओं में डूबी गाथा
मार्मिक ...किन्तु सच भी है
जवाब देंहटाएंsach ko bayan karti rachna
जवाब देंहटाएंपंक्ति दर पंक्ति सच बयां करते हुये ..... अभिव्यक्ति बेहद गहन भाव लिये ..... मन को छू गई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया मैम
जवाब देंहटाएंसादर
सच्चाई है यह मार्मिक कविता रीना जी ।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी ..
जवाब देंहटाएंबहुत दर्द भरी रचना ! स्त्री के चेहरे की हर मुस्कान के नीचे आँसुओं का एक समंदर छिपा रहता है इसमें कोई संदेह ही नहीं है ! बड़ी कुशलता से वह उसे छिपा जाती है यह भी सत्य है !
जवाब देंहटाएंसुहागन स्त्री के भीतर का दर्द --- मन को भिंगोती रचना
जवाब देंहटाएंसादर
नारी के मन की पीड़ा का बखूबी शब्दों मीन ढाला है आपने ... हालांकि नारी फिर ही उसे माफ़ कर देती है ... वृत रखती है उसके लिए ...
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