आखिर क्यों
आखिर कबतक
यूँ बेआबरू
होती रहेंगी बेटीयाँ ?
कभी उनके कपड़ों पर
कभी उनकी आज़ादी पर
सवाल उठते थे ?
पर मासूम बच्चियाँ
दुधमुही बच्चियाँ अब उनपर
क्या और किस
बात का दोषारोपण होगा ?
उनपर किस बात की
उँगली उठेगी अब ?
क्यों नहीं ऊँगली उठती
उन वैहशी नज़रों पर
उनकी कोढ़ी आत्मा पर
उनके मलिन मस्तिष्क पर
और कहाँ सोया है
हमारा कानून
क्यों नहीं बनाता
कोई मिसाल
की जुल्म के बारे में
सोचकर ही काँप उठे
उन बेदर्दों की आत्मा
और उड़ सके ये बेटीयाँ
बिना किसी डर के
अपनी उड़ान..
आखिर डर के साए
में कबतक जीना होगा ?
बेटियों को और उनके
परिवारजनों को
फिर कैसे कोई
बेटी बचाएँ और उन्हें पढ़ायेगा ?
कब देंगे हम बेटियों को यह विश्वास
की वो है अब सुरक्षित ?
कब दे पाएँगे हम उन्हें
खुला आसमान ??
आखिर कब ???
रीना मौर्य मुस्कान




