जब भी कुछ परेशानी होती
या कोई कठिनाई आए
मुझे चिंता मुक्त करने के खातिर
कभी माँ, कभी बहन
कभी सखी बन जाती है
माँ तू कितने किरदार निभाती है l
कभी खेलती, बातें करती
आँचल में छुपाती है
सीने से लगाकर मुझको
सारे दुःख बिसराती है
माँ तू कितने किरदार निभाती है l
बच्चों की शिक्षा को तुमने
सर्वप्रथम माना हरदम
मेरे लिए तो माँ तू ही
देवी सरस्वती बन जाती है
माँ तू कितने किरदार निभाती है l
कभी गुरु बन ज्ञान देती
ऊँच-नीच का पाठ पढ़ाती
संस्कारो की देती शिक्षा
जीवन की कला सिखाती है
माँ तू कितने किरदार निभाती है l
तुम्हारी महिमा के क्या कहने
अपने सपने त्यागकर
हमपर सबकुछ वार कर
तू हमारा भविष्य बनाती है
माँ तू कितने किरदार निभाती है।
रीना मौर्या मुस्कान
मुंबई,महाराष्ट्र
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुघवार 29 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंममतामयी माँ को नमन।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंवाह!बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी
हटाएंमाँ की सुन्दर यशोगान वाली रचना ... पर ये सारे फ़ीके पड़ जाते है या यों कहें कि इस की चर्चा के बिना माँ का किरदार अधूरा रह जाए शायद .... माँ का अपनी संतति के लिए गर्भकाल और प्रसव-पीड़ा ... अतुल्य योगदान
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुबोध जी
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी
हटाएंthank you
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