गलत रास्ता a short story...
मद्धम परीवार में जन्मा नमन, अशोक और सुमन का बेटा है..
छोटा परीवार माता -पिता छोटी बहन सिया और नमन...." हम दो हमारे दो" और "छोटा परीवार सुखी परीवार" वाली स्थिति थी यहाँ...
नमन बी.एस.सी कर रहा था .ज्यादा नहीं पर शुरू से ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाता है..सिया भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो जाती..माता पिता भी खुश थे. बच्चों पर अधिक दबाव नहीं डालते.प्यार से उन्हें समझाते है..
नमन बी.एस.सी द्वितीय वर्ष में आ गया ..अब यहाँ वहां के दोस्तों के साथ उसकी उठक- बैठक कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी..
माता -पिता की हिदायते जैसे अब उसे रोक-टोक लगने लगी ..ज्यादा समय घर के बाहर रहना...बदनसीबी यहाँ हो गयी की उसके , उन दोस्तों में वह ज्यादा पढ़ा था..बाकि सब कम पढ़े थे.. उसके दोस्त उसकी छोटी -छोटी बात पर तारीफ करने लगे..क्योंकि उनके लिए क.ख ग घ से ज्याद तो पहाड़ जैसा था..
उनके झांसे में आकर नमन काफी-काफी देर तक घर से बाहर रहने लगा...उसके दोस्त उससे अपना काम निकलवाते फिर पेट भर नमन की तारीफ कर देते..नमन फुला नहीं समाता और घर आकर जब अपने माँ -पिता से यह बताता है तो उसके पिता उसे समझाते है की , तुम अपनी बराबरी,, अपने से ज्यादा पढ़े -लिखे के साथ करो तब तुम्हें पता चलेगा की,तुम्हें अभी बहुत -कुछ सीखना है.. पर नमन कहाँ माननेवाला था उसे लगता की उसके माता-पिता उसे नीचा दिखाना चाहते है..इसलिए ऐसा बोल रहे है..
कुछ दिन के बाद नमन का रिजल्ट आया जिसमे वह दो विषयों में फेल हो गया ..तभी भी उसके पापा ने उसे प्यार से समझाया पर कोई फायदा ना हुआ.. उलट वह अपने दोस्तों के साथ और समय बिताने लगा
उसमें से कुछ सिगरेट और दारू पीनेवाले लोग भी थे जो घर से लड़ - झगड़ कर पैसे ले आते...नमन दारू और सिगरेट तो नहीं पिता था पर अपने उन दोस्तों के साथ बैठा रहता था...उसके दोस्तों को उसकी ये बात अच्छी नहीं लगती थी...दोस्तों ने उसे फ़साने की साजिश की ..वे मजाक के बहाने उसपर कभी दारू झिड़क देते तो कभी सिगरेट के धुवें उड़ा देते..
जब वह घर जाता तो उसके कपड़ों से दारू और सिगरेट की बदबू आती...माता - पिता जब सवाल पूछते तो नमन कहता मैं तो सिर्फ वहां खड़ा था ...नमन की बात तो सही थी... पर बेटे के कपड़ो से जो बदबू आ रही है और उसके बदलते रवैय्ये के कारण वे उसपर विश्वास भी नहीं कर पा रहे थे..." वो कहते है न अगर आप किसी गलत इन्सान के साथ खड़े भी है तो भी आप भी शक के घेरे में आ जायेंगे."..यही स्थिति यहाँ भी थी...माता - पिता को लगता है की उनका बेटा बिगड़ गया है...और बेटे को लगता है की उसके माता-पिता उसपर शक करते हैं....
सिख...
१) किसी के बहकावे में न आये...माता-पिता से बड़ा हितैषी बच्चों के लिए और कोई नहीं होता...
२) प्रसंशा अपनी जगह ठीक है पर उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा जरुरी है...
३) आप भले ही बहुत अच्छे हो पर यदि आप गलत व्यक्ति के साथ खड़े हैं .. तो आप भी शक के घेरे में आ सकते हो...
कम पढ़े लिखे से कोई गलत मतलब नहीं है मेरा..हर बात के कई पहलू हो सकते है..जिनमे एक यह भी है....
मद्धम परीवार में जन्मा नमन, अशोक और सुमन का बेटा है..
छोटा परीवार माता -पिता छोटी बहन सिया और नमन...." हम दो हमारे दो" और "छोटा परीवार सुखी परीवार" वाली स्थिति थी यहाँ...
नमन बी.एस.सी कर रहा था .ज्यादा नहीं पर शुरू से ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाता है..सिया भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो जाती..माता पिता भी खुश थे. बच्चों पर अधिक दबाव नहीं डालते.प्यार से उन्हें समझाते है..
नमन बी.एस.सी द्वितीय वर्ष में आ गया ..अब यहाँ वहां के दोस्तों के साथ उसकी उठक- बैठक कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी..
माता -पिता की हिदायते जैसे अब उसे रोक-टोक लगने लगी ..ज्यादा समय घर के बाहर रहना...बदनसीबी यहाँ हो गयी की उसके , उन दोस्तों में वह ज्यादा पढ़ा था..बाकि सब कम पढ़े थे.. उसके दोस्त उसकी छोटी -छोटी बात पर तारीफ करने लगे..क्योंकि उनके लिए क.ख ग घ से ज्याद तो पहाड़ जैसा था..
उनके झांसे में आकर नमन काफी-काफी देर तक घर से बाहर रहने लगा...उसके दोस्त उससे अपना काम निकलवाते फिर पेट भर नमन की तारीफ कर देते..नमन फुला नहीं समाता और घर आकर जब अपने माँ -पिता से यह बताता है तो उसके पिता उसे समझाते है की , तुम अपनी बराबरी,, अपने से ज्यादा पढ़े -लिखे के साथ करो तब तुम्हें पता चलेगा की,तुम्हें अभी बहुत -कुछ सीखना है.. पर नमन कहाँ माननेवाला था उसे लगता की उसके माता-पिता उसे नीचा दिखाना चाहते है..इसलिए ऐसा बोल रहे है..
कुछ दिन के बाद नमन का रिजल्ट आया जिसमे वह दो विषयों में फेल हो गया ..तभी भी उसके पापा ने उसे प्यार से समझाया पर कोई फायदा ना हुआ.. उलट वह अपने दोस्तों के साथ और समय बिताने लगा
उसमें से कुछ सिगरेट और दारू पीनेवाले लोग भी थे जो घर से लड़ - झगड़ कर पैसे ले आते...नमन दारू और सिगरेट तो नहीं पिता था पर अपने उन दोस्तों के साथ बैठा रहता था...उसके दोस्तों को उसकी ये बात अच्छी नहीं लगती थी...दोस्तों ने उसे फ़साने की साजिश की ..वे मजाक के बहाने उसपर कभी दारू झिड़क देते तो कभी सिगरेट के धुवें उड़ा देते..
जब वह घर जाता तो उसके कपड़ों से दारू और सिगरेट की बदबू आती...माता - पिता जब सवाल पूछते तो नमन कहता मैं तो सिर्फ वहां खड़ा था ...नमन की बात तो सही थी... पर बेटे के कपड़ो से जो बदबू आ रही है और उसके बदलते रवैय्ये के कारण वे उसपर विश्वास भी नहीं कर पा रहे थे..." वो कहते है न अगर आप किसी गलत इन्सान के साथ खड़े भी है तो भी आप भी शक के घेरे में आ जायेंगे."..यही स्थिति यहाँ भी थी...माता - पिता को लगता है की उनका बेटा बिगड़ गया है...और बेटे को लगता है की उसके माता-पिता उसपर शक करते हैं....
सिख...
१) किसी के बहकावे में न आये...माता-पिता से बड़ा हितैषी बच्चों के लिए और कोई नहीं होता...
२) प्रसंशा अपनी जगह ठीक है पर उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा जरुरी है...
३) आप भले ही बहुत अच्छे हो पर यदि आप गलत व्यक्ति के साथ खड़े हैं .. तो आप भी शक के घेरे में आ सकते हो...
कम पढ़े लिखे से कोई गलत मतलब नहीं है मेरा..हर बात के कई पहलू हो सकते है..जिनमे एक यह भी है....
अच्छी शिक्षा देती एक सार्थक कहानी ....वाह
जवाब देंहटाएंrecent poem : मायने बदल गऐ
बहुत सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी है रीना...
जवाब देंहटाएंसामायिक भी....आज के दौर में ये सभी सीख बड़ी काम की है..
सस्नेह
अनु
sundar aur nashihat se bhari upyogi prastuto,kabile gaur ******१) किसी के बहकावे में न आये...माता-पिता से बड़ा हितैषी बच्चों के लिए और कोई नहीं होता...
जवाब देंहटाएं२) प्रसंशा अपनी जगह ठीक है पर उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा जरुरी है...
३) आप भले ही बहुत अच्छे हो पर यदि आप गलत व्यक्ति के साथ खड़े हैं .. तो आप भी शक के घेरे में आ सकते हो...
माँ , बाप, भाई, बहन, और मित्रों के लिये बहुत ही सुन्दर सीख लिए पोस्ट हेतु सादर नमन
जवाब देंहटाएंअच्छी शिक्षादेती लघुकथा |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह हम तो समझे की आप सिर्फ रचनाएँ ही लिखती हैं। लेकिन आप तो ऑल राउंडर हैं रीना। बहुत अच्छी सीख देती एक मुकम्मल कथा।
जवाब देंहटाएंप्रभावी सीख..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया शिक्षाप्रद आलेख
बेहद सार्थक कहानी है रीना जी प्रयास जारी रखिये हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं. सादर
जवाब देंहटाएंकथा के माध्यम से सुंदर सन्देश देने का सार्थक प्रयास सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंमाँ बाप हमेशा अपने बच्चो का भला ही चाहते है,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वह सुनयना थी,
सुंदर सन्देश देने का प्रयास किया.. सार्थक और सटीक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya likha hai Reena..kabile tarif kash ki aaj ke naujawan esse kuch shikh parapat kar sake...
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख देती सुंदर रचना के लिए बधाई रीना जी ..
जवाब देंहटाएंसच्चाई है आपकी बातों में ... एक अच्छा सन्देश देने का प्रयास है ... सार्थक लेखन ...
जवाब देंहटाएंगलत संगत में रहने पर पाक साफ नही रह सकते,कुछ न कुछ बुरा प्रभाव तो पड़ता ही है।आज के समाज को आइना दिखाती अच्छी प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच..गलत संगत का असर तो निश्चय ही होता है...सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंprerna dayak aalekh .....abhar reena ji
जवाब देंहटाएंशिक्षाप्रद ।
जवाब देंहटाएंaajkal ke bachche sahi aur galt me fark nahi samjh pate.prerak katha..
जवाब देंहटाएंKahani achci lagi . Mata-Pita bachchon ke dost bane roj kya hua uske bare men charcha Karen. taki bachchon ke bhataw ka jaldi pata chale.
जवाब देंहटाएंछोटी सी अच्छी सी कहानी, और सीख भी ! :)
जवाब देंहटाएंAaj ke samay ke anurup sikh bhari kahani.
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