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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

Diya Aur Bati दिया और बाती



एक दुजे बिन अधुरे हैं हम 
मै नहि तो वो रोशन हि नहि 
वो नहि तो मेरा अस्तित्व हैं कम
वो मेरी संगिनी हैं ,
वो मेरी साथी
मै दिया हु तो वो बाती...
दिया और बाती.....

17 टिप्‍पणियां:

  1. मिट्टी के तन में चेतना की वर्तिका कंचन की लौ बनकर जलती है ...

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  2. जन्‍म जन्‍म का साथ है दिया और बाती का...
    एक दूसरे के बगैर दोनों का कोई अस्तित्‍व नहीं।
    सुंदर पोस्‍ट।

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  3. aap mere blog par aai bahut achcha laga.aapko pahli baar padh rahi hoon sunder kavita likhi hai.jud rahi hoon aapke blog se milte rahiyega.

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  4. सुन्दर भाव..प्यारी सी कविता..बधाई.

    'पाखी की दुनिया' में भी घूमने आयें..

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  5. बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....

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  6. bahut hi badiyaa diyaa aur baati ke baare main bahut hi8 achchi baat kahi aapne bahut badhaai aapko.mere blog per aane ke liye bahut bahut dhanyawaad.aasha hai aage bhi aapka aashirwaad meri rachanaon ko milataa rahegaa,aabhaar.

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  7. दिया और बाती का संयोग अद्भुत है!

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