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मंगलवार, 12 जून 2012

Jan Dena Yah Vikalp Kitana Sahi Hai जान देना यह विकल्प कितना सही है???





बचपन से किताबों में पढ़ते 
और 
लोगों से सुनते आए हैं 

"जीवन संघर्ष है "
"मेहनत करने से सफलता मिलती है"
फिर क्यूँ 
इस संघर्ष से डरकर 
अपना जीवन बर्बाद किया 
परीक्षा में फेल हुए 
या कम अंक आए तो क्या हुआ...
जीवन का क्यूँ विनाश किया 
एक साल की तो बात थी 
मेहनत करते तो 
फिर सफल हो ही जाते 
एक साल के लिए 
क्यूँ तुमने अपना पूरा 
जीवन बर्बाद किया....
जान देना यह विकल्प 
कितना सही था
या परिश्रम करना 
तुम्हे रास नहीं था 
किस बात की चिंता थी तुम्हें 
एक साल पीछे हो गए 
लोग हसेंगे 
या माता पिता गुस्सा होंगे 
इस बात का डर था 
मृत्यु को अपनाने से अच्छा 
थोड़ा हौसला और दिखाते...
परिश्रम करते 
सफल हो जाते...
हँसनेवाले हँसते रह जाते....
जीवन तो बर्बाद न होता..
तेज कदम बढ़ाते..
तो आगे भी बढ़ जाते..
फिर सर उठा कर 
चलते...
माता पिता भी खुश हो जाते...
उज्ज्वल भविष्य को ख़त्म 
कर मृत्यु की तुमने  
क्यूँ राह अपनाई ......
जान देना यह विकल्प 
कितना सही था.....
या परिश्रम करना 
तुम्हे रास नहीं था ...









शुक्रवार, 8 जून 2012

Jabse Tumhen Bhuli Hu Khud ko Pa Liya Hai Maine जबसे तुम्हे भूली हूँ ,, खुद को पा लिया है मैंने....



कितना बदल दिया था
खुद को तुम्हें पाने के लिए 
कैसी जिज्ञासा थी वो ????
कैसा बचपना था ???
जरा भी ना सोचा 
की कब तक पहन सकुंगी
ये झूठा मुखौटा .....
तुम्हें पाने के नाम पर 
खुद को भूलती जा रही हूँ
आज इस मुखौटे को
उतार कर तो देखूँ
की , कितना पीछे छोड़ दिया है खुद को 
या अभी भी मेरा अस्तित्व 
इस मुखौटे के पीछे दम तोड़ रहा है...
अब भी इसमे कुछ जान बाकि है 
बेचारा ,,,,कितना घुटा होगा इस मुखौटे के पीछे 
कैसे भूल गई मै,,,,
मेरा यही अस्तित्व तो मेरी पहचान है......
इस मुखौटे की तरह नहीं 
जिसे मैंने पहना था 
कुछ समय पहले .......
तभी से तो लोग कहने लगे 
की,,,तू कितना बदल गई है....
क्या मेरा बदलना सही था..
जब इस मुखौटे का रंग फीका पड़ता 
तो मेरा असली अस्तित्व 
 सामने आ ही जाता न...
उस वक्त क्या करती मैं 
फिर एक नया मुखौटा लगाती 
अच्छा किया जो आज 
तुम्हें भुलाने का फैसला किया...
तभी तो अंतर्मंथन कर 
पाई हूँ स्वयं का ....
और देखो.....
जबसे तुम्हे भूली हूँ ,, खुद को पा लिया है मैंने....


बुधवार, 30 मई 2012

Maa Tere Anchal Me Mera Sansar Samaya Hai माँ तेरे आँचल में मेरा संसार समाया है ...






माँ तेरे आँचल में मेरा संसार समाया है 

माँ आँचल फैलाकर भगवान से 
मेरे जन्म की कामना करती थी  
शायद इसलिए मै आई हूँ 
माँ अपने आँचल में ढेरो प्यार समेटकर 
मुझपर लुटाया करती है .....

मेरे जीवन के हर पड़ाव में 
माँ ने साथ निभाया है 
माँ तेरे आँचल में मेरा संसार समाया है.......

पहला कदम जब शुरू किया मैंने 
नन्हे कदमों से जब चलती 
गिरती और फिर रोने लगती
माँ की आँखे नम हो जाती .........
दुआ में फिर वो आँचल फैलाती ..........

पढ़ना -लिखना शुरू किया तब
मै पहले ,,, पर माँ देर से सोती 
मुझसे जादा मेरी शिक्षा में
माँ ही उलझी रहती  
मेरे उज्जवल भविष्य की 
नींव वो मजबूत करती
माँ भगवान से मन्नते माँगती ........
दुआ में फिर वो आँचल फैलाती .........

जीवन के युवावस्था का पड़ाव जब आया 
भटके न कदम मेरे
और
मेरे भविष्य की चिंता ने 
माँ को रात - रातभर जगाया 
संस्कारो से मुझे सींचा माँ ने 
नियमित जीवन का पाठ पढ़ाती
सूरज बन चमकूँ मैं
फूलों की तरह महकूँ  मैं.......
दुआ में वो फिर आँचल फैलाती .........

कितने ही आशिर्वाद और दुआएँ 
बटोरी है माँ ने अपने आँचल में 
और देती है मुझे रोज 
मेरे हर कार्य की सफलता में 
इसलिए तो कहती हूँ 
माँ तेरे आँचल में मेरा संसार समाया है.......









शनिवार, 26 मई 2012

Kya Hai Insan Ki pahchan Sharirik Sundarata Ya Man Ki Sundarata usake Swabhav V Gun "क्या है इंसान की पहचान शारीरिक सुंदरता या मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुण "


"क्या है इंसान की पहचान
शारीरिक सुंदरता या मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुण "

आपको क्या लगता है ?? एक बार की बात बताती हूँ मै अपनी सहेलियों के साथ बस में सफ़र कर रही थी...सफ़र क्या वो लोग कॉलेज में दाखिले के लिए जा रहे थे मुझे भी मदद के लिए बुला लिया....तो मै भी उनके साथ चलने को तैयार हो गयी ..
तमाशा तब शुरू हुआ जब मै उनके साथ बस में खिड़कीवाले शीट पर बैठी.बस शुरू आने - जानेवाले सभी लोगों पर कमेंट करना चालू हो गया....
पहला शिकार ....
वो देख कितनी काली है एक तो काली है ऊपर से काला ड्रेस भी पहनी है...

दूसरा शिकार ....

वो चशमिश को देख...... मैंने उनकी तरफ देख कर हल्की सी मुस्कान दी....और मन में सोचा उधर नहीं....अपने बगल में देख....क्यूंकि उनके बगल में मै बैठी थी.....और मै भी चश्मा लगाती हूँ ....:-)

तीसरा शिकार....

एक मोटी सी लड़की ( अब इसके बारे में सुनिए....)
मोटी कितना खाती है इसके माँ -बाप इसको खिलाते -खिलाते ही कंगाल हो जाएंगे .....
अब देखिये कंगाल तो इस लड़की के माँ - बाप होंगे ना इन दोनों को क्या पड़ी है....

ये तो मैंने सिर्फ आपको उदहारण दिए है ,,,,,ना जाने कितने मासूम और बेगुनाह लोग मेरी सहेलियों की खिंचाई का शिकार बने है.
         अब एक महत्वपूर्ण बात जो आपको सोच में डाल  देगी और आपको हंसी भी आ जाएगी....
         मेरी सहेलियों में एक खुद  एक पैर से लकवे का शिकार थी .....
         और दूसरी हड्डी का ढांचा .........
         आ गयी ना हंसी :)))))

कितनी अजीब बात है ना ,,, जो खुद ही किसी तकलीफ से ग्रस्त है वो भी दूसरों की तकलीफ नहीं समझते .....

क्या शारीरिक बनावट ही इंसान की पहचान है.कोई शारीरिक रूपसे सुन्दर है तो क्या वो ही सुन्दर कहलायेगा,,,

मैंने उनसे कहा किसी को शारीरिक रूप से आंकना सही नहीं है ,कोई काला है या काली है..मोटा या ,मोटी हो  चशमिश हो...इससे इंसान की पहचान करना सही नहीं है उनका  मजाक  उड़ाना सही नहीं है  ...इंसान की पहचान उसके मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुणों से करनी चाहिए ....
            
कॉलेज का रास्ता करीब एक घंटे के आसपास था...अगर ट्रेफिक हो तो और जादा समय लग जाता है..
इसलिए इस विषय पर मेरी भाषणबाजी चालू थी...
तो हड्डी के ढांचे ने मेरा हाथ पकड़कर कहा - "बस कर ना यार तू भी क्या पका रही है " 
 उसकी हां में हां मिलाते हुए दूसरी ने कह दिया तू तो एकदम बड़े -बुड़ो की तरह बात कर रही है......
तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा की बात पकाने की या बड़े - बुड़ोवाली नहीं है .....
हमें किसी के शारीरिक रूप का कभी मजाक नहीं करना चाहिए....
मै आगे बोलने जा ही रही थी की --एक बार उनके चहरे को गौर से देखा.....तो मुझे महसूस हुआ की शायद ये दोनों मेरी बातों से उब गए है.....( और हो भी क्यों ना -- बेचारे ताली बजा-बजाकर मजा कर रहे थे औए मैंने उन्हें गंभीर कर दिया...)
इसलिए मै चुप हो गयी क्यूंकि ,,,'एक कहावत है....
" भैस के आगे बिन.........
बस अगले स्टॉप पर रुकी तो एक मोटा सा बच्चा बस में चढ़ा.. स्कूल जा रहा था....
ये फिर शुरू हो गई ......" अभी से इतना मोटा है बड़ा होगा तो कितना मोटा हो जायेगा..बस में घुस भी नहीं पाएगा "..दूसरी कहती है...." इसको तो टेम्पो से जाना पड़ेगा .....

बेचारे बच्चे को भी नहीं बक्शा इन दोनों ने ....

अब मेरी बरदास्त से बाहर था....मै चुपचाप बस से उतरने के लिए आगे जाकर खड़ी हो गई.... तभी उन्होंने मुझे टोका .. अभी कॉलेज आने को टाइम है अभी कहा जा रही हो...

गुस्सा इतना आ रहा था की इन्हें क्या कहूँ ...
उस वक्त कबीर जी का एक दोहा दिमाग में आ गया...
ये दोहा उनकी हरकतों पर कितना फिट बैठता है ये मै नहीं जानती थी.. बस कुछ कहना ही था तो कह दिया....
 "बुरा जो देखण मैं चला बुरा न मिलया कोए 
जो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा न कोए "
हा अ  अ  .... थोड़ी मन को शांति मीली.....
बस स्टॉप पर रुकी और मै बस से उतर गई...:-)




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